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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


विद्रोह क्या है

हिप्पीवाद पर मैं कुछ कहूं ऐसा छात्रों ने अनुरोध किया है।
इस संबंध में पहली बात बर्नार्ड शॉ ने एक किताब लिखी है: मैक्सिम्स फॉर ए रेव्होल्यूशनरी, क्रांतिकारी के लिए कुछ स्वर्ण-सूत्र। और उसमें पहला स्वर्ण-सूत्र बहुत अद्भुत लिखा है। और इस ढंग से पहले स्वर्ण-सूत्र पर भी बात पूरी हो जाती है। पहला स्वर्ण-सूत्र लिखा है : 'दी फर्स्ट गोल्डन रूल इज दैट देअर आर नो गोल्डन रूल्स', पहला स्वर्ण नियम यही है कि कोई भी स्वर्ण-नियम नहीं है।

हिप्पीवाद के संबध में जो पहली बात कहना चाहूंगा, वह यह कि हिप्पीवाद कोई वाद नहीं है, समस्त वादों का विरोध है। पहले इस 'वाद' को ठीक से समझ लेना जरूरी है।
पांच हजार वर्षों से मनुष्य को जिस चीज ने सर्वाधिक पीड़ित किया है, वह है वाद-वह चाहे इस्लाम हो, चाहे ईसाइयत हो, चाहे हिंदू हो, चाहे कम्युनिज्य हो, सोशलिज्म हो, फासिज्म हो, या गाँधी-इज्य हो। वादों ने मनुष्य को बहुत ज्यादा पीड़ित किया और परेशान किया है।

मनुष्य इतिहास के जितने युद्ध हैं जितना हिंसापात है, वह सब वादों के आसपास घटित हुआ है। वाद बदलते चले गए हैं लेकिन नए वाद पुरानी
बीमारियों की जगह ले लेते हैं और आदमी फिर वहीं का वहीं खड़ा हो जाता है। 

1917 में रूस में पुराने वाद समाप्त हुए, पुराने देवी-देवता विदा हुए तो नए देवी-देवता पैदा हो गए नया धर्म पैदा हो गया। क्रेमलिन अब मक्का और मदीना से कम नहीं है। वह नयी काशी है, जहां पूजा के फूल चढ़ाने सारी दुनिया के कम्युनिस्ट इकट्ठे होते हैं। मूर्तियां हट गयी जीसस क्राइस्ट के चर्च मिट गए लेकिन लेनिन की मृत देह क्रेमलिन के चौराहे पर रख दी गयी है। उसकी पूजा चलती है!
वाद बदल जाता है, लेकिन नया वाद उसकी जगह ले लेता है।
हिप्पी समस्त वादों से विरोध है। हिप्पी के नाम से जिन युवकों को आज जाना जाता है, उनकी धारणा यह है कि मनुष्य बिना वाद के जी सकता है। न किसी धर्म की जरूरत है, न किसी शास्त्र की, न किसी सिद्धात की, न किसी विचार-सम्प्रदाय, आइडियालॉजी की। क्योंकि उनकी समझ यह है कि जितना ज्यादा विचार की पकड़ होती है, जीवन उतना ही कम हो जाता है। हिप्पियों की इस बात से में भी अपनी सहमति जाहिर करना चाहता हूं। इन अर्थों में वे बहुत सांकेतिक हैं सिंबालिक हैं और आने वाले भविष्य की एक सूचना देते हैं।

आज से 100 वर्ष बाद दुनिया में जो मनुष्य होगा, वह मनुष्य वादों के बाहर तो निश्चित ही चला जाएगा। वाद का इतना विरोध होने का कारण क्या है?

हिप्पियों के मन में, उन युवकों के मन में जो समस्त वादों के विरोध में चले गए हैं; समस्त मंदिरों, समस्त चर्चों के विरोध में चले गए है-जाने का कारण है। और कारण है इतने दिनों का निरंतर का अनुभव। वह अनुभव यह है कि जितना ही हम मनुष्य के ऊपर वाद थोपते हैं उतनी ही मनुष्य की आत्मा मर जाती है।
जितना बड़ा ढांचा होगा वाद का, उतनी ही भीतर की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि हममें से बहुत-से लोग मर तो बहुत पहले जाते हैं दफनाए बाद में जाते हैं। कोई 3० साल में मर जाता है और 7० साल में दफनाया जाता। हम उसी दिन अपनी स्वतंत्रता अपना व्यक्तित्व अपनी आत्मा खो देते हैं जिस दिन कोई विचार का कोई ढाचा हमें सब तरफ से पकड़ लेता है।

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