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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


रोज भगवान की प्रार्थना कर रहे है-कि कुछ भी हो जाए। इतने दिन तक जो चिल्लाए हैं, वह वक्त पर काम पड़ेगा। इतने नारियल चढ़ाए, इतनी रिश्वत दी, वक्त पर धोखा दे गए हो?
भय में आदमी भगवान को भी इतनी रिश्वत देता रहा है!
और जिन देशों में भगवान को रिश्वत दी गई हो, उन देशों में मिनिस्टर रूपी भगवानों को रिश्वत दी जाने लगी हो तो मुश्किल है, कोई हैरानी है? और जब इतना बड़ा भगवान रिश्वत ले लेता हो तो छोटे-मोटे मिनिस्टर ले लेते हों तो नाराजगी क्या है?
भय है, भय की सुरक्षा के लिए हम सब उपाय कर रहे हैं। क्या ऐसे कोई आदमी अभय हो सकता है? कभी भी नही। अभय होने का क्या रास्ता है? सुरक्षा की व्यवस्था अभय होने का रास्ता नहीं है।
असुरक्षा की स्वीकृति अभय होने का रास्ता है, 'ए टोटल एक्सेप्टेंस आफ इनसिक्योरिटी', जीवन असुरक्षित है, इसकी परिपूर्ण स्वीकृति मनुष्य को अभय कर जाती है।
मृत्यु है, उससे बचने का कोई उपाय नहीं है, उससे भागने का कोई उपाय नही है; वह है। वह जीवन का ही एक तथ्य है। वह जीवन का ही एक हिस्सा है। वह जन्म के साथ ही जुड़ा है।

जैसे एक डंडे में एक ही छोर नहीं होता, दूसरा छोर भी होता है। और वह आदमी पागल है, जो एक छोर को स्वीकारे और दूसरे को इनकार कर लेता है। सिक्के में एक ही पहलू नहीं होता है, दूसरा भी होता है। और वह आदमी पागल है, जो एक को खीसे में रखना चाहे औँर दूसरे से छुटकारा पाना चाहे। यह कैसे हो सकेगा?
जन्म के साथ मृत्यु का पहलू जुड़ा है। मृत्यु है, बीमारी है, असुरक्षा है; कुछ भी निश्चित नहीं है, सब अनसटेंन है।
जिंदगी ही एक अनसटेंनटी है, जिंदगी ही एक अनिश्चय है।
सिर्फ मौत एक निश्चय है। मरे हुए को कोई डर नहीं रह जाता। जिंदा में सब असुरक्षा है। कदम-कदम पर असुरक्षा है।
जो क्षणभर पहले मित्र था, क्षणभर बाद मित्र होगा, यह तय नहीं है। इसे जानना ही होगा, मानना ही होगा। क्षणभर पहले जो मित्र था, वह क्षणभर बाद मित्र होगा, यह तय नहीं है। क्षणभर पहले जो प्रेम कर रहा था, वह क्षणभर बाद फिर प्रेम करेगा, यह निश्चित नहीं है। क्षणभर पहले जो व्यवस्था थी, वह क्षणभर बाद नहीं खो जाएगी, यह निश्चित नहीं है। सब खो सकता है, सब जा सकता है, सब विदा हो सकता है। जो पत्ता अभी हरा है, वह थोड़ी देर बाद सूखेगा और गिरेगा। जो नदी वर्षा से भरी रहती है, थोड़ी देर बाद सूखेगी और रेत ही रह जाएगी।

जीवन जैसा है उसे जान लेना, और जीवन में जो अनिश्चय है, उसका परिपूर्ण बोध और स्वीकृति मनुष्य को अभय कर देती है। फिर कोई भय नहीं रह जाता।

मैं भावनगर से आया। एक चित्रकार को उसके मां-बाप मेरे पास ले आए। योग्य, प्रतिभाशाली चित्रकार है, लेकिन एक अजीब भय से सारी प्रतिभा कुंठित हो गई है। एक भय पकड़ गया है, जो जान लिए ले रहा है। अमरीका भी गया था वह, वहां चिकित्सा भी चली। मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषण किए साइकोएनलिसिस की। कोई फल नहीं हुआ सब समझाया जा है, कोई फल नहीं हुआ। मेरे पास लाए हैं, कहा कि हम मुश्किल में पड गए'। कोई फल होता नहीं है। सब समझा चुके हैं, सब हो चुका है। इसे क्या हो गया है, यह एकदम भयभीत है।

मैंने पूछा, किस बात से भयभीत हैं? तो उन्होंने कहा कि रास्ते पर कोई लंगड़ा आदमी दिख जाए, तो यह इसको भय हो जाता है कि कहीं मैं लंगड़ा न हो जाऊं। अब बड़ी मुश्किल है। अंधा आदमी मिल जाए तो घर आकर रोने लगता है कि कहीं मै अंधा न हो जाऊ। हम समझाते हैं कि तू अंधा क्यों होगा तू बिल्कुल स्वस्थ है, तुझे कोई बीमारी नहीं है। कोई आदमी मरता है रास्ते पर बस यह बैठ जाता है। यह कहता है कहीं मैं मर न जाऊं। हम समझाते हैं समझाते-समझाते हार गए। डाक्टरों ने समझाया चिकित्सकों ने समझाया, इसकी समझ में नहीं पड़ता है।
मैंने कहा, तुम समझाते ही गलत हो। वह जो कहता है, ठीक ही कहता है। गलत कहां कहता है? जो आदमी आज अंधा है, कल उसके पास भी आंख थी। और जो आदमी आज लंगड़ा है, हो सकता है कि उसके पास भी पैर हों। और आज उसके पास पैर हैं कल वह लंगड़ा हो सकता है। और आज जिसके पास आंखें हैं कल वह अंधा हो सकता है। इसमें यह युवक गलत नहीं कह रहा है। गलत तुम समझा रहे हो। और तुम्हारे समझाने से इसका भय बढ़ता जा रहा है। तुम कितना ही समझाओ कि तू अंधा नहीं हो सकता है। गारंटी कराओ। कौन कह सकता है कि मैं अंधा नहीं हो सकता। सारी दुनिया कहे तो भी निश्चित नहीं है कि मैं अंधा नहीं हो सकता। अंधा मैं हो सकता हूं, क्योंकि आंखें अंधी हो सकती हैं। मेरी आंखों ने कोई ठेका लिया है कि अंधी नहीं हों! पैर लंगड़े हुए हैं। मेरा पैर लंगड़ा हो सकता है। आदमी पागल हुए हैं। मैं पागल हो सकता हूं। जो किसी आदमी के साथ कभी भी घटा है-वह मेरे साथ भी घट सकता है, क्योंकि सारी संभावना सदा है।
मैंने कहा, इस युवक को तुम गलत समझा रहे हो। तुम्हारे गलत समझाने से-यह कितनी ही कोशिश करे कि मैं अंधा नहीं हो सकता, लेकिन इसे दिखाई पड़ता है कि अंधे होने की संभावना-तुम कितना ही कहो कि नहीं हो सकता है-मिटती नहीं।
उस युवक ने कहा, यही मेरी तकलीफ है। यह जितना समझाते हैं, उतना मैं भयभीत हुए चला जा रहा हूं। मैंने उनसे कहा कि यह बिल्कुल ही गलत समझाते हैं। मैं तुमसे कहता हूं कि तुम अंधे हो सकते हो, तुम लंगड़े हो सकते हो, तुम कल सुबह मर सकते हो, तुम्हारी स्त्री तुम्हें कल छोड़ सकती है, मां तुम्हारी दुश्मन हो सकती है, मकान गिर सकता है, गांव नष्ट हो सकता है, सब हो सकता है। इसमें कुछ इनकार करने जैसा जरा भी नहीं है। इसे स्वीकार करो। मैंने कहा, तुम जाओ, इसे स्वीकार करो। सुबह मेरे पास आना।

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