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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


और दूसरा सूत्र...पहला सूत्र है, बूढ़े चित्त का मतलब है 'क्रिपल्ड विद फियर', भय से पुंज।
और दूसरा सूत्र है...बूढे चित्त का अर्थ है, 'बर्डन विद नालेज', ज्ञान से बोझिल।
जितना बूढ़ा चित्त होगा, उतना ज्ञान से बोझिल होगा। उतने पांडित्य का भारी पत्थर उसके सिर पर होगा।
जितना युवा चित्त होगा, उतना ज्ञान से मुक्त होगा।
उसने स्वयं ही जो जाना है, जानते ही उसके बाहर हो जाएगा। और आगे बढ़ जाएगा। 'ए कांस्टेंट अवेयरनेस ऑफ नाट नोन'। एक सतत भाव उसके मन में रहेगा, नहीं जानता हूं। कितना ही जान ले, उस जानने को किनारे हटाता हुआ, न जानने के भाव को सदा जिंदा रखेगा। वह अतीत में भी क्षमता रखेगा। रोज सब सीख सकेगा, प्रतिपल सीख सकेगा। कोई ऐसा क्षण नहीं होगा, जिस दिन वह कहेगा कि मैं पहले से ही जानता हूं, इसलिए सीखने की अब कोई जरूरत नही है। जिस आदमी ने ऐसा कहा वह बूढ़ा हो गया।

युवा चित्त का अर्थ है : सीखने की अनंत क्षमता।
बूढ़े चित्त का अर्थ है : सीखने की क्षमता का अंत।
और जिसको यह खयाल हो गया, मैंने जान लिया है, उसकी सीखने की क्षमता का अंत हो जाता है।

और हम सब भी ज्ञान से बोझिल हो जाते हैं। हम ज्ञान इसीलिए इकट्ठा करते हैं कि बोझिल हो जाएं। ज्ञान को हम सिर पर लेकर चलते हैं। ज्ञान हमारा पंख नहीं बनता है, ज्ञान हमारा पत्थर बन जाता है।
ज्ञान बनना चाहिए पंख। ज्ञान बनता है पत्थर।
और ज्ञान किनका पंख बनता है, जो निरंतर और-और-और जानने के लिए खुले हैं, मुक्त हैं, द्वार जिनके बंद नहीं हैं।
एक गांव में एक फकीर था। उस गांव के राजा को शिकायत की गई कि फकीर लोगों को भ्रष्ट कर रहा है।
असल में अच्छे फकीरों ने दुनिया को सदा भ्रष्ट किग ही है। वे करेंगे ही, क्योंकि दुनिया भ्रष्ट है। इसको बदलने के लिए भ्रष्ट करना पड़ता है। दो भ्रष्टताएं मिलकर सुधार शुरू होता है। दुनिया भ्रष्ट है। इस दुनिया को ऐसा ही स्वीकार कर लेने के लिए कोई संन्यासी, कोई फकीर कभी राजी नहीं हुआ है।
गांव के लोगों ने खबर की, पंडितों को खबर की कि यह आदमी भ्रष्ट कर रहा है। ऐसी बातें सिखा रहा है, जो किताबों में नहीं हैं। और ऐसी बातें कह रहा है कि लोगों को संदेह जग जाए। और लोगों को ऐसे तर्क दे रहा है कि लोग भ्रमित हो जाएं संदिग्ध हो जाएं।
राजा ने फकीर को बुलाया दरबार में, और कहा कि मेरे दरबार के पंडित कहते हैं कि तुम नास्तिक हो। तुम लोगों को भ्रष्ट कर रहे हो। तुम गलत रास्ता दे रहे हो। तुम लोगों में संदेह पैदा कर रहे हो।
उस फकीर ने कहा, मैं तो सिर्फ एक काम कर रहा हूं कि लोगों को युवक बनाने की कोशिश कर रहा हूं। लेकिन अगर तुम्हारे पंडित ऐसा कहते हैं तो मैं तुम्हारे पंडितों से कुछ पूछना चाहूंगा।
राजा के बड़े सात पंडित बैठ गए। उन्होंने सोचा वे तैयार हो गए!
पंडित वैसे भी एवररेडी, हमेशा तैयार रहता है, क्योंकि रेडिमेड उत्तर से पंडित बनता है। पंडित के पास कोई बोध नहीं होता है। जिसके पास बोध हो, वह पंडित बनने को राजी नहीं हो सकता है। पंडित के पास तैयार उत्तर होते हैं।

वे तैयार होकर बैठ गए हैं। उनकी रीढ़ें सीधी हो गईं-जैसे छोटे बच्चे स्कूल में परीक्षाएं देने को तैयार हो जाते हैं। छोटे बच्चों में, बड़े पंडितों में बहुत फर्क नहीं। परीक्षाओं में फर्क हो सकता है। तैयार हो गया पंडितों का वर्ग। उन्होंने कहा पूछो। सोचा कि शायद पूछेगा ब्रह्म क्या है? मोक्ष क्या है? आत्मा क्या है? कठिन सवाल पूछेगा। तो सब उत्तर तैयार थे। उन्होंने मन में दुहरा लिए जल्दी से कि क्या उत्तर देने हैं।

जिस आदमी के पास उत्तर नहीं होता है, उसके पास बहुत उत्तर होते हैं! और जिसके पास उत्तर होता है, उसके पास तैयार कोई उत्तर नहीं होता है! प्रश्न आता है तो उत्तर पैदा होता है। उसके पास प्रश्न पहले से तैयार होते हैं जिनके पास बोध नहीं होता है! क्योंकि बोध न हो तो प्रश्न तैयार, प्रश्न का उत्तर तैयार होना चाहिए, नहीं तो वक्त पर मुश्किल हो जाएगा।
उन पंडितों ने जल्दी से अपने सारे ज्ञान की खोजबीन कर ली होगी। उसने चार-पांच कागज के टुकड़े उन पंडितों के हाथ में पकड़ा दिए, एक-एक टुकड़ा। और कहा कि एक छोटा-सा सवाल पूछता हूं, व्हाट इज ब्रेड रोटी क्या है?

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