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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


पंडित मुश्किल में पड़ गए, क्योंकि किसी किताब में नहीं लिखा हुआ है, किसी उपनिषद् में नहीं किसी वेद में नही, किसी में नहीं। व्हाट इज बेड, रोटी क्या है? कहा कि कैसा नासमझ आदमी है! कैसा सवाल पूछता है।

लेकिन वह फकीर समझदार रहा होगा। उसने कहा आप लिख दें एक-एक कागज पर। और ध्यान रहे एक-दूसरे के कागज को मत देखना क्योंकि पंडित सदा चोर होते हैं। वह सदा दूसरों के उत्तर सीख लेते हैं। आसपास मत देखना। जरा दूर-दूर हटकर बैठ जाओ। अपना-अपना उत्तर लिख दो।

राजा भी बहुत हैरान हुआ। राजा ने कहा, क्या पूछते हो तुम? उसने कहा इतना उत्तर दे दें तो गनीमत है। पंडितों से ज्यादा आशा नहीं करनी चाहिए। बड़ा सवाल बाद में पूछूंगा, अगर छोटे सवाल का उत्तर आ जाए।

पहले आदमी ने सोचा, रोटी यानी क्या? फिर उसने लिखा कि रोटी एक प्रकार का भोजन है। और क्या करता? दूसरे आदमी ने बहुत सोचा रोटी यानी क्या? तो उसने लिखा रोटी आटा पानी और आग का जोड़ है। और क्या करता? तीसरे आदमी ने बहुत सोचा, रोटी यानी क्या? उसे उत्तर नहीं मिलता। तो उसने लिखा रोटी भगवान का एक वरदान है। पांचवें ने लिखा कि रोटी एक रहस्य है, एक पहेली है, क्योंकि रोटी खून कैसे बन जाती है, यह भी पता नहीं। रोटी एक बड़ा रहस्य है, रोटी एक मिस्ट्री है। छठे ने लिखा रोटी क्या है? यह सवाल ही गलत है। यह सवाल इसलिए गलत है कि उसका उत्तर ही पहले से कहीं लिखा हुआ नहीं है। गलत सवाल पूछता है यह आदमी। सवाल वह पूछने चाहिए जिनके उत्तर लिखें हों। सातवें आदमी ने कहा कि मैं उत्तर देने से इनकार करता हूं, क्योंकि उत्तर तब दिया जा सकता है, जब मुझे पता चल जाए कि पूछने वाले ने किस दृष्टि से प्रश्न पूछा है? तो रोटी यानी क्या? हजार दृष्टिकोण हो सकते हैं हजार उत्तर हो सकते हैं। स्यादवादी रहा होगा। कहा कि, यह भी हो सकता है, वह भी हो सकता है।

सातों उत्तर लेकर राजा के हाथ में फकीर ने दे दिए और उसने कहा कि ये आपके पंडित हैं। इन्हें यह पता नहीं है कि रोटी क्या है? और इनको पता है कि नास्तिक क्या है, आस्तिक क्या है! लोग किससे भ्रष्ट होंगे, किससे बनेंगे, यह इनको पता हो सकता है!
राजा ने कहा पंडितो, एकदम दरवाजे से बाहर हो जाओ। पंडित बाहर हो गए। उसने फकीर से पूछा कि तुमने बड़ी मुश्किल में डाल दिया है।
फकीर ने कहा जिनकी खोपड़ी पर भी ज्ञान का बोझ है, उन्हें सरल-सा सवाल मुश्किल में डाल सकता है। जितना ज्यादा बोझ उतनी समझ कम हो जाती है। क्योंकि यह खयाल पैदा हो जाता है बोझ से कि समझ तो है। और समझ ऐसी चीज है कि कास्टेंटली क्रिएट करनी पड़ती है, है नहीं। कोई ऐसी चीज नहीं है कि आपके भीतर रखी है समझ। उसे आप रोज पैदा करिए तो वह पैदा होती है, और बंद कर दीजिए तो बंद हो जाती है।
समझ साइकिल चलाने जैसी है। जैसे एक आदमी साइकिल चला रहा है। अब साइकिल चल पड़ी है। अब वह कहता है, साइकिल तो चल पड़ी है, अब पैडल रोक लें। अब पैडल रोक लें, साइकिल चलेगी? चार-छह कदम के बाद गिरेगा। हाथ-पैर तोड़ देगा। साइकिल का चलाना निरंतर चलने के ऊपर निर्भर है।

प्रतिभा भी निरंतर गति है। जीनियस कोई 'डैड स्टेटिक एंटाइटी' नहीं है। प्रतिभा कोई ऐसी चीज नहीं है कि कहीं रखी है भीतर, कि आपके पास कितनी प्रतिभा है, सेर भर और किसी के पास दो सेर! ऐसी कोई चीज नहीं है प्रतिभा।
प्रतिभा मूवमेंट है, गति है, निरंतर गति है।

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