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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


13

नारी और क्रांति

मेरे प्रिय आत्मन,

व्यक्तियों में ही, मनुष्य में ही स्त्री और पुरुष नहीं होते हैं-पशुओं में भी, पक्षियों में भी। लेकिन एक और भी नयी बात आपसे कहना चाहता हूं : देशों में भी सी और पुरुष देश होते हैं।

भारत एक स्त्री देश है और स्त्री देश रहा है। भारत की पूरी मनःस्थिति स्त्रैण है। ठीक उसके उल्टे जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों को पुरुष देश कहा जाता है। भारत की पूरी आत्मा नारी है। इसलिए ही भारत कभी भी आक्रामक नहीं हो पाया। पूरे इतिहास में आक्रामक नहीं हो पाया। इसीलिए भारत में हिंसा का कोई प्रभाव पैदा नहीं हो सका। भारत की पूरे विचार की कशा अहिंसा की कथा है। भारत के पूरे इतिहास को देखने से एक बहुत आश्चर्यजनक घटना मालूम पड़ती है। दुनिया का कोई भी देश उस अर्थों में स्त्रैण नहीं है, जिस अर्थों में भारत। यही भारत का दुर्भाग्य भी सिद्ध हुआ।
सारा जगत पुरुषों का, सारा जगत पुरुष-वृत्तियों का, सारा जगत आक्रामक, सारा जगत हिंसात्मक, भारत अकेला आक्रामक नहीं हिंसात्मक नहीं!
भारत के पिछले तीन हजार वर्ष का इतिहास दुख परेशानी और कष्ट का इतिहास रहा है। लेकिन यही तथ्य आने वाले भविष्य में सौभाग्य का कारण भी
बन सकता है। क्योंकि जिन देशों ने पुरुष के प्रभाव में विकास किया, वे अपनी मरण घड़ी के निकट पहुंच गए।
पुरुष का चित्त आक्रमण का चित्त है, एग्रेशन का। पुरुष का चित्त हिंसा का चित्त है, वायलेंस का। पश्चिम के जिन देशों ने उस चित्त के अनुकूल विकास किया वे सारे देश धीरे-धीरे युद्धों से गुजकर अंतिम युद्ध टोटल वार के करीब पहुंच गए। अब कोई परिणति नहीं मालूम होती-सिवाय कि वे टकराए और टूट जाएं नष्ट हो जाएं। उनके साथ पुरुषों ने जो सभ्यता खड़ी की है आज तक, वह सारी की सारी नष्ट हो जाए।

या दूसरा उपाय यह है कि इतिहास का चक्र घूमे और पुरुष की सभ्यता की कथा बंद हो, और एक नया अध्याय शुरू हो, जो अध्याय स्त्री चित्त की सभ्यता का अध्याय होगा।
इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। इसे हम समझें तो हम मनुष्य चेतना के भीतर चलने वाले सबसे बड़े ऊहापोह से परिचित हो सकेंगे।
नीत्शे जैसा व्यक्ति भारत में हम लाख कोशिश करें तो पैदा नहीं हो सकता। नीत्शे जर्मनी में ही पैदा हो सकता है! और जर्मनी लाख उपाय करे तो भी गांधी और बुद्ध जैसे आदमी को पैदा करना जर्मनी के लिए असंभव है। गांधी और बुद्ध जैसे व्यक्ति भारत में ही पैदा हो सकते हैं। यह पैदा हो जाना आकस्मिक नहीं है, यह एक्सीडेंटल नहीं है। कोई व्यक्ति पैदा होता है, कोई विचारधारा पैदा होती है, यह पूरे देश के प्राणों के हजारों वर्षों के मंथन का परिणाम होता है।

यह आश्चर्यजनक है कि भारत का आज तक का पूरा इतिहास भूलकर भी पुरुष का इतिहास नहीं रहा है। और इसीलिए भारत में विज्ञान का जन्म भी नहीं हो सका। विज्ञान एक पुरुष कर्म है। विज्ञान का अर्थ है : प्रकृति पर विजय। विज्ञान का अर्थ है, जो चारों तरफ फैला हुआ जगत है, उसको जीतना। पुरुष का मन जीतने में बहुत आतुर है।

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