लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

Like this Hindi book 0

संभोग से समाधि की ओर...


इसलिए निरंतर जो सृजन करता है, उसके भीतर मस्तिष्क, बुद्धि और प्रतिभा, प्रज्ञा पैदा होती है। जो सृजन बंद कर देता है उसके भीतर जंग लग जाती है और सब खत्म हो जाती है।
रोज चलिए। और चलेगा कौन। जिसको यह खयाल नहीं है कि मैं पहुंच गया। जिसको यह खयाल हो गया कि पहुंच गया वह चलेगा क्यों? वह विश्राम करेगा वह लेट जाएगा। ज्ञान का बोध पहुंच जाने का खयाल पैदा करवा देता है कि हम पहुंच गए पा लिया जान लिया अब क्या है? रुक गए।
ज्ञान कितना ही आए, और ज्ञान आने की क्षमता निरंतर शेष रहनी चाहिए। वह तभी रह सकती है, जब ज्ञान बोझ न बने। ज्ञान को हटाते चलें। रोज सीखें। और रोज जो सीख जाएं राख की तरह झाड़ दे। और कचरे की तरह-जैसे सुबह फेंक दिया था घर के बाहर कचरा, ऐसे रोज सांझ, जो जाना जो सीखा उसे फेंक  
दें। ताकि कल आप फिर ताजे सुबह उठें, और फिर जान सके फिर सीख सकें, सीखना जारी रहे।
ध्यान रहे, क्या हम सीखते हैं यह मूल्यवान नहीं है। कितना हम सीखते है-उस सीखने की प्रक्रिया से गुजरने वाली आत्मा निरंतर जवान होती चली जाती है।
सुकरात जितना जवानी में रहा होगा मरते वक्त उससे ज्यादा जवान है। क्योंकि मरते वक्त भी सीखने को तैयार है। मर रहा है, जहर दिया जा रहा है, जहर बाहर बांटा जा रहा है। सारे मित्र रो रहे हैं और सुकरात उठ-उठकर बाहर जाता है, और घोंटने वाले से पूछता है बड़ी देर लगाते हो! समय तो हो गया, सूरज अब डूबा जाता है। वह जहर घोंटने वाला कहने लगा, पागल हो गए हो सुकरात! मैं तुम्हारी वजह से धीरे-धीरे घोंटता हूं कि तुम थोड़ी देर और जिंदा रह लो। ताकि इतने अच्छे आदमी का पृथ्वी पर और थोड़ी देर रहना हो जाए। तुम पागल हो, तुम खुद ही इतनी जल्दी मचा रहे हो, तुम्हें जल्दी क्या है? उसके मित्र पूछते है इतना जल्दी क्या है? क्यों मरने की आतुरता है?
सुकरात कहता है, मरने की आतुरता नहीं, जीवन को जाना मौत भी जानने का बड़ा मन हो रहा है कि क्या है मौत! क्या है मौत? मरने के क्षण पर खड़ा हुआ आदमी जानना चाहता है कि क्या है मौत! यह आदमी जवान है, इसको मार सकते हो? इसका मारना बहुत मुश्किल है। इसको मौत भी नहीं मार सकती हे। यह मौत को भी जान लेगा और पार हो जाएगा।
जो जान लेता है, वह पार हो जाता है। जिसे हम जान लेते हैं उससे पार हो जाते हैं।
लेकिन हम मरने के पहले ही जानना बंद कर देते हैं। आमतौर से बीस साल के, इक्कीस साल के करीब आदमी की बुद्धि ठप हो जाती है। उसके बाद बुद्धि विकसित नहीं होती, सिर्फ संग्रह बढ़ता चला जाता है-सिर्फ संग्रह। दस पत्थर की जगह पंद्रह पत्थर हो जाते हैं बीस पत्थर हो जाते हैं। दस किताबों की जगह पचास किताबें हो जाती हैं लेकिन क्षमता जानने की फिर आगे नहीं बढ़ती। बस इक्कीस साल में आदमी बुद्धि के हिसाब से मर जाता है! बूढ़ा हो जाता है।
कुछ लोग और जल्दी मरना चाहते हैं-और जल्दी! और जो जितना जल्दी मर जाता है, समाज उसको उतना ही आदर देता है। तो जितना देर जिंदा रहेगा उससे उतनी तकलीफ होती है समाज को। क्योंकि जिंदा आदमी, सोचनेवाला आदमी, खोजनेवाला आदमी नए पहलू देखता है, नए आयाम देखता है 'डिस्टर्बिंग' होता है। बहुत-सी जगह चीजों को तोड़ता-मरोड़ता मालूम होता है। 

हम सब ज्ञान के बोझ से दब गए हैं।
मैंने सुना है, एक आदमी घोड़े पर सवार जा रहा है, एक गांव को। गांव के लोगों ने उसे घेर लिया है, और कहा कि तुम बहुत अद्भुत आदमी हो। वह आदमी अद्भुत रहा होगा। वह अपना पेटी-बिस्तर सिर पर रखे हुए था और घोड़े के ऊपर बैठा हुआ था। गांव के लोगों ने पूछा, यह तुम क्या कर रहे हो? घोड़े पर पेटी-बिस्तर रख लो। उसने कहा, घोड़े पर बहुत ज्यादा वजन हो जाएगा, इसलिए मैं अपने सिर पर रखे हुए हूं!

उस आदमी ने सोचा कि घोड़े पर पेटी-बिस्तर रखने से बहुत वजन हो जाएगा, कुछ हिस्सा बांट लें। खुद घोड़े पर बैठे हुए हैं और पेटी-बिस्तर अपने सिर पर रखे हुए हैं, ताकि अपने पर कुछ वजन पड़े और घोड़े पर वजन कम हो जाए।

ज्ञान को अपने सिर पर मत रखिए। जिंदगी काफी समर्थ है। आप छोड़ दीजिए आपकी जिंदगी की धारा उसे संभाल लेगी। उसे सिर पर रखने की जरूरत नहीं। और सिर पर रखने से कोई फायदा नहीं। आप तो छोड़िए। जो भी उसमें एसेंशियल है, जो भी सारभूत है, वह आपकी चेतना का हिस्सा होता चला जाएगा। उसे सिर पर मत रखिए। किताबों को सिर पर मत रखिए। रेडीमेड उत्तर सिर पर मत रखीए बंधे हुए उत्तर से सदा बचिए बंधे हुए ज्ञान से बचिए और भीतर एक युवा चित्त पैदा हो जाएगा।
जो व्यक्ति ज्ञान के बोझ से मुक्त! हो जाता है, जो व्यक्ति भय से मुक्त हो जाता है, वह व्यक्ति युवा हो जाता है।
और जो व्यक्ति बूढ़ा होने की कोशिश में लगा है, अपने ही हाथों से, क्योंकि ध्यान रहे, मैं कहता हूं कि बुढ़ापा अर्जित है। बुढ़ापा है नहीं। हमारा अचिवमेंट है, हमारी चेष्टा से पाया हुआ फल है।
जवानी स्वाभाविक है, युवा चित्त होना स्वभाव है।
वृद्धावस्था हमारा अर्जन है।
अगर हम समझ जाएं चित्त से कैसे वृद्ध होता है, तो हम तत्थण जवान हो जाएंगे।
बूढ़ा चित्त बोझ से भरा चित्त है, जवान चित्त निबोंझ है। बोझिल है बूढ़ा चित्त।
जवान चित्त निर्बोझ है, वेटलेस है। जवान चित्त ताजा है। जैसे सुबह अंकुर खिला हो, निकला हो नए बीज से, ऐसा ताजा है। जैसा नया बच्चा पैदा हुआ हो, जैसे नया फूल खिला हो, जैसी नई ओस की बूंद गिरी हो, नई किरण उठी हो, नया तारा जगा हो, वैसा ताजा है।
बूढ़ा चित्त जैसे अंगारा बुझ गया, राख हो गया हो। पत्ता सड़ गया गिर गया मर गया। जैसे दुर्गंध इकट्ठी हो गई हो, सड़ गई हो लाश। इकट्ठी कर ली हैं, लाशें, तो घर में रख दी हैं तो बास फैल गई हो। ऐसा है बूढ़ा चित्त।
नया चित्त, ताजा चित्त 'यंग माइंड' नदी की धारा की तरह तेज पत्थरों को काटता, जमीन को तोड़ता सागर की तरफ भागता है। अनंत अज्ञात की यात्रा पर। और बूढ़ा चित्त? तालाब की तरह बंद। न कहीं जाता न कहीं यात्रा करता है; न कोई सागर है आगे, न कोई पथ है, न कोई जमीन काटता न पत्थर तोड़ता, न पहाड़ पार करता-कहीं जाता ही नहीं। खा चित्त बंद, अपने में घूमता, सड़ता, गंदा होता। सूरज की धूप में पानी उड़ता और सूखता और कीचड़ होता चला जाता है। जवान चित्त जीव है, बूढ़ा चित्त मृत्यु है।
और अगर जीवन को जानना हो, परम जीवन को, जिसका नाम परमात्मा है, उस परम जीवन को, तो युवा चित्त चाहिए यंग माइंड चाहिए।
और हमारे हाथ में है कि हम अपनै को बूढ़ा करें या जवान। हमारे हाथ में है कि हम वृद्ध हो जाएं सड़ जाएं या युवा हों, ताजे और नए। नए बीज की तरह हमारे भीतर कुछ फूटे या पुराने रिकार्ड की तरह कुछ बार-बार रिपीट होता रहे। हमारे हाथ में है सब।
आदमी के हाथ में है कि वह प्रभु के लिए द्वार बन जाए। तो युवा है भीतर, प्रभु के लिए द्वार बन गया।
और जो बूढ़ा हो गया उसकी दीवाल बंद है, द्वार बंद है। वह अपने में मरेगा गलेगा सको। कब के अतिरिक्त उसका कहीं और पहुंचना नहीं होता।
लेकिन अब तक जो समाज निर्मित हुआ है, वह बूढ़े चित्त को पैदा करने वाला समाज है।
एक नया समाज चाहिए, जो नए चित्त को जन्म देता हो। एक नई शिक्षा चाहिए जो बूढ़े चित्त को पैदा न करती हो। और नए चित्त को पैदा करती हो एक नई हवा नया प्रशिक्षण नई दीक्षा, नया जीवन एक नया वातावरण चाहिए जहां अधिकतम लोग जवान हो सकें। बूढ़ा आदमी अपवाद हो जाए वृद्ध चित्त अपवाद हो जाए जहां युवा चित्त हो।
अभी उल्टी बात है। युवा चित्त अपवाद है। कभी कोई बुद्ध कभी कोई कृष्ण कभी कोई क्राइस्ट युवा होता है और परमात्मा की सुगंध और गीत और नृत्य से भर जाता है। हजारों साल तक उसकी सुगंध खबर लाती रहती है। इतनी ताजगी पैदा कर जाता है कि हजारों साल तक उसकी सुगंध आती है। उसके प्राणों से उठी
हुई पुकार गूंजती रहती है। कभी ये मनुष्यता के लंबे इतिहास में दो-चार लोग युवा होते हैं। हम सब बू़ढ़े ही पैदा होते हैं और बूढ़े ही मर जाते हैं!

लेकिन हमारे अतिरिक्त और कोई जिम्मेदार नहीं है। यह मैंने दो बातें निवेदन कीं। इन पर सोचना। मेरी बात मान मत लेना। जो मानता है, वह बूढ़ा होना शुरू हो जाता है। सोचना, गलत हो सकता हो, सब गलत हो सकता हो। जो मैंने कहा, एक भी ठीक न हो। सोचना खोजना शायद कुछ ठीक हो तो वह आपके जीवनको युवा करने में मित्र बन सकता है।
मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना उससे अनुगृहीत हूं और अंतमें सबके भीतर बैठे हुए परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book