...मगर ऊपर से ओठों पर फैला लेगा धन्यवाद देने लगेगा, कहेगा-''बड़ी अच्छी
बातें कर रहे'। बड़े वेद वचन बोल रहे हैं। बड़ी वाणी आपुकी मधुर है। उपनिषद् के
ऋषि भी क्या बोलते होंगे, ऐसी बातें! धन्यभाग मेरे कि आपके अमृत-वचन मेरे ऊपर
गिरे!''
भीतर क्रोध की आग जल रही है। दबा लेना अपने क्रोध को। लेकिन क्रोध को दबाकर
कितनी देर चल सकते हैं। साइकिल चलाएगा तो पैडल जोर से मारने लगेगा। कार
ड्राइव करेगा तो एकदम से स्पीड छोड़ देगा। वह जो क्रोध दबाया है, वह सब तरफ से
निकलने की कोशिश करेगा।
अमेरिका के मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अगर आदमी को क्रोध की कोई समझ पैदा हो
सके, तो अमेरिका के एक्सिडेंट पचास प्रतिशत कम हो जाएंगे। वह जो एक्सिडेंट हो
रहे हैं वे सड़क की वजह से कम हो रहे हैं दिमाग की वजह से ज्यादा हो रहे हैं।
आपको पता है, जब आप क्रोध में साइकिल चलाते हैं तो किस तरह से चलाते हैं?
एकदम से जैसे आपको पर लग जाते हैं! फिर कोई नहीं दिखता सामने। ऐसा मालूम होता
है-रास्ता खाली है, एकदम। और सामने कोई आ जाए तो ऐसा मन होता है कि टकरा दूं
जोर से; क्योंकि भीतर टकराहट चल रही होती है।
क्रोध से भरा आदमी तेजी से साइकिल चलाता हुआ घर पहुंचेगा। रास्ते में दो-चार
बार बचेगा टकराने से। क्रोध और भारी हो जाएगा। और जाकर घर वह प्रतीक्षा करेगा
कि कोई मौका मिल जाए और पत्नी की गर्दन दबा दे...।
पत्नी बड़ी सरल चीज है। वह है ही इसलिए कि आप घर जाइए और उसकी गर्दन दबाइए।
उसका मतलब क्या है और? उसका उपभोग क्या है और? उसका असली उपयोग यही है कि
जिंदगी भर जो व्यथा आपके ऊपर गुजरे, घर आकर पत्नी पर रिलीज कीजिए।
...पर पहुंचते ही सब गड़बड़ दिखायी पड़ने लगेगी। पत्नी, जिसको कल रात ही आपने
कहा था कि 'तू बड़ी सुंदर है, एकदम से मालूम पड़ेगी कि यह सूर्पणखा कहां से आ
रही है? सब प्रेम खत्म हो जाएगा। फिल्म की अभिनेत्रियां याद आ जाएंगी कि
सौंदर्य इसको कहते हैं और यह औरत...?
...रोटी जली हुई मालूम पड़ेगी। सब्जी में नमक नहीं मालूम पड़ेगा। सब
अस्त-व्यस्त मालूम पड़ेगा। घर अस्त-व्यस्त घूमता हुआ मालूम पड़ेगा। पिल पड़ेंगे
उस पर। कल भी रोटी ऐसी ही थी; क्योंकि कल भी पत्नी वही थी। कल भी पत्नी वही
थी, जो आज है; लेकिन आज सब बदला हुआ मालूम पड़ेगा। वह जो भीतर दबाया है, वह
निकलने के लिए मार्ग खोज रत है।
और ध्यान रहे! जैसे पानी ऊपर नहीं चढ़ता ऐसे क्रोध भी ऊपर की तरफ नही चढ़ता।
पानी भी नीचे की तरफ उतरता है, क्रोध भी नीचे की तरफ उतरता है। कमजोर की तरफ
उतरता है, ताकतवर की तरफ नहीं उतरता। मालिक की तरफ नहीं चढ़ सकता है क्रोध।
चढ़ाना हो तो बड़ा पंप लगाना जरूरी है। कम्युनिज्य वगैरह के पंप लगाओ, तब चढ़
सकता है मालिक की तरफ; नहीं तो नहीं।
पत्नियों की तरफ उतर जाता है और पत्नी कुछ भी नहीं कर सकती, क्योंकि पति
परमात्मा है। ये पति यह भी समझा रहे हैं पत्नियों को कि हम परमात्मा हैं।
बड़े मजे की बातें दुनिया में चल रही हैं! कोई स्त्री यह नहीं कह रही है कि
महाशय, आप और परमात्मा! आप ही परमात्मा हैं तो परमात्मा पर भी शक पैदा हो रहा
है। और आप भी परमात्मा हैं! आपकी इज्जत नहीं बढ़ती है परमात्मा होने से,
परमात्मा की इज्जत घटती है आपके होने से। कृपा करके, परमात्मा को बाइज्जत
जीने दो, आप परमात्मा मत बनी; लेकिन कोई सी नहीं कहेगी!
स्त्री के पास व्यर्थ की बकवास करने के लिए बहुत ताकत है, लेकिन बुद्धिमत्ता
की एक बात स्त्री को नहीं करनी है। स्त्री, पति-परमात्मा पर क्रोध नहीं
करेगी। उसको भी राह देखनी पड़ेगी। आग जो लगी है उसके भीतर, वह राह देखेगी। उसे
बच्चे का रास्ता देखना पड़ेगा कि आओ बेटा आज तुम्हारा सुधार किया जाए। बेटे
बेचारे को कुछ पता भी नहीं है। वह अपना नाचता हुआ, अपना बस्ता लिए हुए स्कूल
से चला आ रहा है। उसको पता ही नहीं है कि क्या होने जा रहा
है। उधर मां तैयार बैठी है। प्रतीक्षा कर रही है, सुधार करने की...।
जितने लोग सुधार करने की प्रतीक्षा करते है-ध्यान रखना, उनके भीतर कोई क्रोध
है, जिसकी वजह से उनके भीतर सुधार की आयोजना चलती है। जिनके अपने बेटे नहीं
होते हैं वे अनाथालय खोल लेते हैं; जिनका अपना घर नहीं होता है, वे आश्रम बना
लेते हैं; लेकिन सुधार करते हैं! जिनको कोई नहीं मिलता, वे कोई भी तरकीब
निकाल कर समाज-सुधार करने में लग जाते हैं।
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