उपन्यास >> कंकाल कंकालजयशंकर प्रसाद
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कंकाल भारतीय समाज के विभिन्न संस्थानों के भीतरी यथार्थ का उद्घाटन करता है। समाज की सतह पर दिखायी पड़ने वाले धर्माचार्यों, समाज-सेवकों, सेवा-संगठनों के द्वारा विधवा और बेबस स्त्रियों के शोषण का एक प्रकार से यह सांकेतिक दस्तावेज हैं।
मोहन
के मन में पगली से दूर रहने की बड़ी इच्छा थी। श्रीचन्द्र ने पण्डा को कुछ
रुपये दिये कि पगली का कुछ उचित प्रबन्ध कर दिया जाय और बोले, 'चाची, मैं
मोहन को गाड़ी दिलाने के लिए बाजार लिवाता जाऊँ?'
चाची ने कहा, 'हाँ-हाँ,
आपका ही लड़का है।'
'मैं फिर आता हूँ, आपके
पड़ोस में तो ठहरा हूँ।' कहकर श्रीचन्द्र, किशोरी और मोहन बाजार की ओर
चले।
ऊपर
लिखी हुई घटना को महीनों बीत चुके थे। अभी तक श्रीचन्द्र और किशोरी
अयोध्या में ही रहे। नागेश्वर में मन्दिर के पास ही डेरा था। सरयू की
तीव्र धारा सामने बह रही थी। स्वर्गद्वार के तट पर स्नान करके श्रीचन्द्र
व किशोरी बैठे थे। पास ही एक बैरागी रामायण की कथा कह रहा था-
'राम एक तापस-तिय तारी।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥'
'तापस-तिय
तारी-गौतम की पत्नी अहल्या को अपनी लीला करते समय भगवान ने तार दिया। वह
यौवन के प्रमाद से, इन्द्र के दुराचार से छली गयी। उसने पति से इस लोक के
देवता से छल किया। वह पामरी इस लोक के सर्वश्रेष्ठ रत्न सतीत्व से वंचित
हुई, उसके पति ने शाप दिया, वह पत्थर हो गयी। वाल्मीकि ने इस प्रसंग पर
लिखा है-वातभक्षा निराहारा तप्यन्ती भस्मशायिनी। ऐसी कठिन तपस्या करते
हुए, पश्चात्ताप का अनुभव करते हुए वह पत्थर नहीं तो और क्या थी!
पतित-पावन ने उसे शाप विमुक्त किया। प्रत्येक पापों के दण्ड की सीमा होती
है। सब काम में अहिल्या-सी स्त्रियों के होने की संभावना है, क्योंकि
कुमति तो बची है, वह जब चाहे किसी को अहल्या बना सकती है। उसके लिए उपाय
है भगवान का नाम-स्मरण। आप लोग नाम-स्मरण का अभिप्राय यह न समझ लें कि
राम-राम चिल्लाने से नाम-स्मरण हो गया-
'नाम निरूपन नाम जतन से।
सो प्रकटत जिमि मोल रतन
ते॥'
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