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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य


दो

सरकार से अनुमति प्राप्त करने में डॉ. भास्कर को अधिक समय नहीं लगा। अनुमति मिल जाने के दूसरे दिन ही अपनी कठिन यात्रा के लिए आवश्यक सामान जीप में लदवाया और माधव को जीप स्टार्ट करने की आज्ञा दे दी।

जीप के पहिए चिकनी सड़क पर फिसलने लगे और डॉ. भास्कर का मन कल्पना के मानस-लोक में भ्रमण करने लगा- 'यदि मैं अपने अभियान में सफल हो गया तो देश-विदेश के बड़े-बड़े अखबार मेरे कीर्तिगान से भरे होंगे। मुझे बधाई भेजने वालों का लम्बा ताँता होगा और दूरदर्शन पर विश्व भर के लोग मेरा दर्शन पाकर स्वयं को गौर- बान्वित अनुभव करेंगे। तब सचमुच मैं एक महान व्यक्ति बन जाऊँगा।' माधव का हाथ जीप के स्टीयरिंग पर दाँये-बाँये धूम रहा था और उसका मन उड़ान भर रहा था- 'डॉ. भास्कर के साथ रहने से उसे यश तो मिलेगा ही, आर्थिक लाभ भी खूब होगा। और यदि बे किसी खजाने को पा जाने में सफल हो गये तो बस पौ-बारह ही होंगे। डा. भास्कर तो फड़क-दम अकेले हैं, न जोरू न जांता, बस, अल्लामियाँ से नाता। उन्हें जो भी पुरस्कार और उपहार मिलेंगे, उनमें से अधिकांश पर उसका ही अधिकार होगा। उसकी गृहस्थी संवर जायगी।

तभी मार्ग में कुछ अवरोध आ गया। माधव ने गाड़ी में ब्रेक लगाये। ब्रेक लगाने से जो हल्का-सा धक्का लगा तो डा. भास्कर की विचार- तन्द्रा भंग हो गई। बे माधव से बोले- 'माधवजी, आप शुभ शकुन या अप-शकुन में विश्वास रखते हो या नहीं?'

भास्कर साहब की यह बात सुनकर माधव हंस पड़ा और बोला- 'मनोरंजन के लिए शकुन-शास्त्र में रुचि रखता हूँ - बस! हमारे किया-कलापों पर उसका कुछ प्रभाव पड़ता हो, ऐसा मैं नहीं मानता। आपकी क्या मान्यता है, सर?'

'मेरी तो इसमें आस्था है, भाई माधवजी! जैसे ही आपने जीप स्टार्ट की - हमारे दाहिनी ओर श्याम चिड़िया बोली थी। यह हमारे लिए उत्तम संकेत था।'

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