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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

'और यदि श्याम चिड़िया हमारी दाहिनी ओर की बजाय बायीं ओर बोलती, या यह मान लो श्याम चिड़िया आपको दिखाई ही न देती, तब तो शायद आप यात्रा शुरू ही न करते?' माधव बोला। हंस पड़े भास्कर! बोले- 'मेरी मान्यता यह है कि यदि कार्य- सफलता के लिए हमारा मनोबल ऊँचा रहे तो श्याम चिड़िया को हमारी यात्रा के स्वयं हमारे दाँयी ओर आना ही पड़ेगा ओर बोलना ही पडेगा।'  'वाह! यह भी एक ही रही डॉ. साहब।' ठठाकर हँस पड़ा माधव।

'आप कुछ भी कहो माधब भाई! मेरा तो यह पक्का बिश्वास है कि शिथिल मनोबल के लोग तो कोई भी कार्य प्रारम्भ करते समय शकुन-शास्त्र के अनुसार संकेत ढूँढते हैं और प्रबल मनोबल के लोगों की मनोदशा के अनुसार प्रकृति स्वयं प्रबन्ध कर देती है।'

'तब यह मान लेने में ही क्या हानि है कि 'दारिद्री और शूरमा जब चालें तब सिद्ध' - हँसकर माधव ने कहा।

कुछ देर तक डॉ. भास्कर सोचते रहे। फिर बोले- 'हाँ, यह बिल्कुल सत्य है। दुस्साहसी व्यक्ति को तो प्रकृति रास्ता स्वयं दे देती है और साहसहीन व्यक्ति चलने का विचार ही नहीं ला पाता।'  'अब तो मैं और आप एकमत हो गये न, सर?'

'हाँ भाई माधवजी, मैं मान गया आपकी बुद्धि का लोहा।'  'लज्जित क्यों करते हो सर? यह तो आपके साथ रहने से बुद्धि में कुछ-कुछ विचारने की शक्ति पैदा होने लगी है, अन्यथा मैं तो निपट अनाड़ी था, भला विशेष क्या जानूँ।'

'साहसी होने के साथ आप विवेकवान भी हो, माधव। मैं किसी की मिथ्या प्रशंसा करने का आदी नहीं हूँ।'

माधव प्रसन्न होकर बोला- 'इसी सन्दर्भ में एक चुटकुला सुनाऊँ सर!'

'अरे वाह! नेकी और बूझ-बूझ। चुटकले तो सुनाते ही रहो। सफर भी मजे से तय होगा।'

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