लोगों की राय

उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

152 पाठक हैं

भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

'बन्दरों का नाम सुनते ही तुम इतनी जोरों से डर क्यों गये?' मुस्कराकर डा. साहब ने पूछा।

'मुझे बन्दरों से बहुत डर लगता है, सर! बचपन में मुझे बुरी तरह से काट लिया था - बन्दरों ने। बह घटना अब भी सिनेमा की रील की तरह मेरी आँखों के आगे घूम गई थी।'

'वह तो मैंने बन्दर की नाम ही लिया था, यदि कहीं शेर का नाम लेता, तो शायद आप गाड़ी को ही उलट देते।'

'नहीं सर! शेर से भिड़ने को तो मैं हर समय तैयार हूँ।' अन्धेरे में भी उसने अपनी रायफल को खोला।

डॉ. साहब मुस्करा दिये।

फिर दौर शुरू हुआ-माधव के चुटकुलों व कहानियों का। एक से बढ़कर एक - मजेदार बातें करता हुआ डा. साहब का मन बहलाता रहा माधव।

घूमते-घामते क्या सैर-सपाटा करते हुए दस दिन की यात्रा को पन्द्रह दिन में समाप्त किया गया। मार्ग में किसी संकट का सामना नहीं करना पड़ा और वे निर्बाध अपने गन्तव्य पर जा पहुँचे।

जब वे वहाँ पहुचे तो आधा दिन शेष था। दोपहर का समय ही हुआ था। फिर भी डा. साहब की इच्छा दूसरे दिन खोज कार्य प्रारम्भ करने की थी। माधव ने उसी समय खोज करने का आग्रह किया तो डा. साहब मान गये।

लगभग दो घण्टे के परिश्रम के बाद वे अपने मानचित्र के अनुसार मन्दिर पर पहुँच चुके थे। मन्दिर तो कभी का कालदेवता के उदर में समा चुका था। हाँ, उसके कुछ ध्वंशावशेष इस बात का प्रमाण अवश्य थे कि कभी वहाँ विशाल मन्दिर रहा होगा।

पुरातत्व-वेत्ता का खण्डहरों से बिशेष लगाव होता है। डा. साहब अपने मतलब की चीज खोजने में जुट गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book