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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

रनबीरसिंह को अपनी तरफ बढ़ते देख बालेसिंह छिप गया और धोखा देकर घूमता हुआ रनबीरसिंह के पीछे जा पहुंचा और पीछे ही से तलवार का एक भरपूर हाथ रनबीरसिंह पर चलाया। तलवार रनबीरसिंह के बाएं मोढ़े पर बैठी जिससे उनको सख्त सदमा पहुंचा। उन्हें यह नहीं मालूम था कि पीछे की तरफ बालेसिंह  आ पहुंचा है। तथापि चोट खाने के साथ ही रनबीर ने घूमकर एक हाथ दुश्मन पर ऐसा जमाया कि वह बेकार हो गया। तलवार उसकी जंघा पर बैठी और उसका दाहिना पैर कट कर जमीन पर गिर पड़ा और साथ ही इसके वह घोड़े की पीठ से लुढ़क कर जमीन पर आ रहा। बालेसिंह के फौजी आदमी यह हाल देखकर हताश हो गए और अपने मालिक को उठाकर खेमे की तरफ भागे।

बीरसेन रनबीरसिंह से दूर न था और वह इस लड़ाई का तमाशा बखूबी देख रहा था। रनबीरसिंह ने भी बहुत-सी चोटें खाई थीं मगर इस समय बालेसिंह के हाथ से पहुंची हुई चोट ने उन्हें एकदम मजबूत कर दिया। बालेसिंह से अपना बदला तो ले लिया मगर उनकी आंखों के आगे भी अंधेरा छा गया और वे त्योरा कर जमीन पर गिर पड़े। इस समय बीरसेन ने बड़ी दिलावरी की। अपने आदमियों को साथ लिए हुए बिजली की तरह उनके पास जा पहुंचा और सब लोगों के देखते-देखते उन्हें उठाकर अपनी फौज में ले गया। इस समय बीरसेन का कपड़ा भी लहू से तर-बतर हो रहा था और उसके बदन पर भी कितने ही जख्म लग चुके थे।

बात की बात में रनबीरसिंह किले के अन्दर पहुंचाए गए और बेहोश बालेसिंह अपने खेमे में पहुंचा दिया गया। दोनों मालिकों के बेकाम हो जाने से लड़ाई बन्द हो गई और फौजें अपने-अपने ठिकाने लौट गईं।

 

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