लोगों की राय

उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

266 पाठक हैं

रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

थोड़ी देर बाद रनबीरसिंह ने आंखें खोलीं और अपने चारों तरफ भीड़ देखकर बोले, ‘‘तू ही तो है!’’ (नौजवान से) हां ठीक है, सतगुरु की आज्ञा हो गई, बेशक यहां के रहने वाले तीन आदमियों को छोड़कर बाकी सब हमारे चेले हैं, इसलिए मैं सभी को उपदेश करूंगा।

नौजवान–(जिससे पहले मुलाकात हुई थी) वे तीन आदमी कौन हैं जिन्हें आप अपना चेला नहीं मानते? बेशक सतगुरु उनसे रुष्ट हैं, यदि आप कृपा करके उन तीनों का पता सतगुरु से पूछ के हमें बतावें तो उन्हें अवश्य दण्ड दिया जाए।

रनबीर–(झूमकर) आहा! तू ही तो है! अच्छा देखा जाएगा, घबराओ मत, मुझे सतगुरु ने पन्दह दिन तक यहां रहने की आज्ञा दी है।

नौजवान–(खुश होकर) सतगुरु की हम लोगों पर बड़ी भारी कृपा है। अब आप कृपा करके मकान के अन्दर चलें तो हम लोगों का चित्त प्रसन्न हो।

थोड़ी देर तक मस्ताने ढंग की बातें करने के बाद रनबीरसिंह मकान के अन्दर जाने के लिए उठ खड़े हुए, नौजवान और उसके साथी बड़े ही आदर-सत्कार के साथ अपने अनूठे गुरु रनबीरसिंह को मकान के अन्दर ले गए और उनके रहने के लिए एक उत्तम स्थान का प्रबन्ध किया। इस मकान के अन्दर जाने और उसकी बनावट देखने से रनबीरसिंह को बहुत ताज्जुब हुआ क्योंकि यह मकान सैकड़ों आदमियों के रहने लायक और विचित्र ढंग का बना हुआ था और इसमें कई कैदखाने और तहखाने भी बने हुए थे जिनका कुछ-कुछ हाल आगे चलकर मालूम होगा।

रनबीरसिंह ने सत्कार पाने, स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ करने और मकान को अच्छी तरह देखने में वह समूचा दिन बिता दिया और संध्या होते ही हुक्म दे दिया कि जब तक मैं न बुलाऊं कोई मेरे पास न आवे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book