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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

महात्मा रनबीरसिंह को जो स्थान रहने के लिए दिया गया था उसके सामने ही एक छोटा-सा मन्दिर था जिसमें मां अन्नपूर्णा की मूर्ति स्थापित थी और एक बुढ़िया औरत के सुपुर्द वहां का बिलकुल काम था। रात आधी बीत गई, चारों तरफ सन्नाटा छा गया, उस मकान के अन्दर रहने वाले स्त्री, पुरुष अपने-अपने स्थान पर सो रहे होंगे मगर रनबीरसिंह की आंखों में नींद नहीं। वह उस मृगछाला पर से उठे जो उन्हें बिछाने के लिए दिया गया था और चुपचाप अन्नपूर्णाजी के मन्दिर की तरफ चले। जब उस छोटे से सभा-मण्डप में पहुंचे तो एक चटाई पर उस बुढ़िया पुजारिन को सोते हुए पाया। रनबीरसिंह ने उसे उठाया। वह चौंककर उठ खड़ी हुई और अपने सामने रनबीरसिंह को देखकर ताज्जुब करने लगी क्योंकि बुढ़िया रनबीरसिंह की फकीरी इज्जत को अच्छी तरह जानती थी, दिन भर सें जो खातिरदारी उनकी की गई थी उसे भी अच्छी तरह देख चुकी थी, और उसे मालूम था कि ये उन विकट मनुष्यों के गुरु हैं जो इस मकान में रहते हैं। रनबीरसिंह ने अपने कमर में से एक चिट्ठी निकाली और बुढ़िया के हाथ मे देकर कहा, ‘‘मैं खूब जानता हूं कि तू पढ़ी-लिखी है अस्तु इस चिट्ठी को बहुत जल्द बांच ले और इसके बाद जला कर राख कर दे।’’ बुढ़िया ने ताज्जुब के साथ वह चिट्ठी ले ली और पढ़ने के लिए उस चिराग के पास गई, जो मन्दिर के एक कोने में जल रहा था। उसने बड़े गौर से चिट्ठी पढ़ी और उसकी लिखावट पर अच्छी तरह ध्यान देने के बाद उसी चिराग में जलाकर रनबीरसिंह के पास लौट आकर बोली, ‘‘निःसन्देह आपने बड़ा ही साहस किया, परन्तु वह काम बहुत ही कठिन है जिसके लिए आप आए हैं।’’

रनबीर–बेशक वह काम बहुत ही कठिन है परन्तु जिस तरह मैं अपनी जान पर खेलकर यहां आया हूं उसे भी तू जानती ही है। उस चिट्ठी के पढ़ने से तुझे मालूम हुआ होगा कि यहां तुमसे ही सहायता पाने की आशा पर मैं भेजा गया हूं।

बुढ़िया–बेशक और मुझसे जहां तक होगा आपकी सहायता करूंगी। आह, आज एक भारी बोझ मेरी छाती पर से हट गया और एक बहुत पुराना भेद मालूम हो गया जिसके जानने की मैं इच्छा रखती थी। खैर, जो होगा देखा जाएगा, आप दो-तीन दिन तक चुपचाप रहें, इस बीच में मैं सब बन्दोबस्त करके आपको इत्तला दूंगी। तब तक आप यहां की तालियों का झब्बा किसी तरह अपने कब्जे में कर लीजिए। बस अब यहां से जाइए, ऐसा न हो कोई यहां आपको देख ले तो केवल काम ही में विघ्न न पड़ेगा वरन् मेरी आपकी दोनों ही की जान चली जाएगी।

रनबीर–ठीक है, मैं अभी लौट जाता हूं।

रनबीरसिंह वहां से लौटे और अपनी जगह आकर मृगछाला पर लेट रहे।

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