उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
नौजवान–बहुत अच्छा, तब तक यहां...
रनबीर–बस, बस, बस, चुप चुप। अहा, तू ही तो है!!
इसके आगे नौजवान की हिम्मत आगे न पड़ी कि कुछ कहे। थोड़ी देर बाद रनबीरसिंह ने फिर कहा–
रनबीर–सतगुरु की आज्ञा से तुम लोगों के सरदार को मैं कुछ उपदेश करूंगा, उसे जल्द बुलाओ।
नौजवान–(हाथ जोड़कर) वे तो काशी की तरफ गए हुए हैं, आज कल में...
रनबीर–बस, बस, बस, ज्यादे मत बोलो, किसी को भेजो आगे बढ़के उसे देखें और जल्द आने के लिए कहे।
नौजवान–जो आज्ञा।
नौजवान ने तुरन्त दो आदमियों को जाने का इशारा किया। रनबीरसिंह भी ‘अहा, तू ही तो है! अहा, तू ही तो है!!’ कहते हुए वहां से उठे और मकान के बाहर हो उसके चारों तरफ वाले खुशनुमा मैदान में टहलने लगे, और लोगों को उन्होंने अपना-अपना काम करने के लिए कहा।
इत्तिफाक की बात थी कि उन लोगों का सरदार जो किसी काम के लिए सफर में गया हुआ था इसी समय वहां आ पहुंचा, मगर इस बात को उन लोगों ने बाबा जी की ही करामात समझा और सभी को विश्वास हो गया कि सतगुरु देवदत्त की गद्दी के महात्माजी (रनबीर) निःसन्देह महान पुरुष हैं। नौजवान ने आगे बढ़कर सरदार को सतगुरु के आने का हाल कहा। जिसे सुनकर वह बहुत ही प्रसन्न हुआ। यद्यपि उन लोगों का काम डाकू-लुटेरों और बदमाशों का सा बल्कि इससे भी बढ़ा हुआ था परन्तु अपने गुरु के नाम तथा गद्दी की बड़ी ही इज्जत करते थे और समझते थे कि सतगुरु देवदत्त एक अवतार हो गए हैं और उन्हीं की कृपा से हम लोग अपना काम कर सकते हैं। उन लोगों का जब कोई काम बिगड़ता तो यही समझते कि आज सतगुरु देवदत्त हम लोगों से रंज हो गए हैं, इसी से यह काम बिगड़ गया है, यही कारण था कि सरदार ने गुरु का दर्शन किए बिना मकान के अन्दर जाना उचित न जाना और सब लोगों तथा नौजवान को लिए हुए मैदान के उस हिस्से की तरफ बढ़ा, जहां रनबीरसिंह ‘अहा, तू ही तो है!!’ कहते हुए मस्तानों की तरह झूम-झूम कर टहल रहे थे।
|