उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
ठीक शाम के वक्त ये लोग एक लंबे-चौड़े मैदान में पहुंचे, जहां पल्टनी सिपाहियों के रहने लायक कई खंभे खड़े थे और बहुत से आदमी खाने की चीजें तैयार कर रहे थे, पास ही एक बहुत बड़ा कुआं भी था।
सरदार चेतसिंह ने घोड़ा रोककर जसवंतसिंह से कहा, ‘‘यह हम लोगों का पड़ाव (टिकने की जगह) है। हम लोगों के घोड़े बहुत थक गए हैं और हम लोग खुद भी बहुत भूखे-प्यासे हैं। इस वक्त रात को इस जगह खा-पीकर आराम करना मुनासिब होगा, कल सवेरे कुछ रात रहते हम लोग फिर रवाना होंगे।’’ जसवंत सिंह ने जवाब दिया, जो आप बेहतर समझिए वही ठीक है, मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि कहां जाना है या क्या करना है और कितनी दूर का सफर बाकी है।’’
सरदार चेतसिंह ने इसका जवाब कुछ न दिया। खेमों के पास पहुंचकर कुल सवार घोड़ों पर से उतर पड़े। यहां पर बहुत से साईस भी मौजूद थे जिन्होंने उसी वक्त आगे बढ़कर अपने-अपने घोड़े थाम लिए और मलने-दलने की फिक्र में लगे।
सरदार चेतसिंह जसवंतसिंह को साथ लिए एक खेमे में गए जो वनिस्बत और खेमों के छोटा मगर खूबसूरत था और जिसके अंदर एक सफरी चारपाई और एक खूबसूरत पंलग बिछा हुआ था। सरदार चेतसिंह ने पलंग की तरफ इशारा करके जसवंतसिंह से कहा, ‘‘रनबीरसिंह के लिए यह मसहरी बिछाई गई थी। हम लोग सोचते थे कि आज उनको अपने साथ लाकर इसी मैदान में डेरा करेंगे, मगर अफसोस, बिलकुल मेहनत बर्बाद गई। अब आप इस मसहरी पर आराम कीजिए।’’
सरदार चेतसिंह की बातें सुन और मसहरी के पास बैठ रनबीर सिंह को याद कर जसवंतसिंह खूब रोए। सरदार ने उन्हें बहुत कुछ समझाया और हिम्मत दिलाकर आंसू पोंछ हाथ-मुंह धुलवाया। घंटे भर बाद खाने की तैयारी हुई और सरदार ने जसवंतसिंह को खाने के लिए कहा।
जसवंतसिंह तीन दिन के भूखे थे तिस पर भी खाने से इनकार किया। सरदार चेतसिंह के बहुत कहने-सुनने और कसम देने पर मुश्किल से दो-चार ग्राम खाकर उठ खड़े हुए और हाथ-मुंह धो खेमे के अंदर आ उसी सफरी चारपाई पर लेट रहे, जो सरदार चेतसिंह के लिए बिछी हुई थी और पड़े-पड़े रनबीरसिंह की याद में आंसू बहाने लगे।
सरदार ने आकर देखा कि जसवंतसिंह मसहरी छोड़ उसकी चारपाई पर लेटे हैं। समझ गए कि इनको रनबीरसिंह का गम हद्द से ज्यादे है, उनके वास्ते लगाई मसहरी पर कभी न सोवेंगे और इसके लिए जिद्द करना उन्हें दुःख देना होगा, लाचार दूसरी चारपाई मंगवाकर आप उस पर लेट रहे।
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