उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
ऐसी-ऐसी बातें करके उस सरदार ने जिसका नाम चेतसिंह था, जसवंतसिंह को अपने कपड़े पहनने और हरबे लगाने पर राजी किया और सब कोई वहां से उठ पहाड़ी के नीचे आए।
रनबीरसिंह और जसवंतसिंह के दोनों मरे हुए घोड़े अभी तक उसी तरह पड़े हुए थे, किसी जानवर ने भी नहीं खाया था, और उन्हीं के पास ही जसवंतसिंह के कपड़े जहां से छोड़ गए थे उसी तरह ज्यों के त्यों पड़े थे जिसे उन्होंने झाड़ पोंछकर फिर पहन लिया।
सरदार चेतसिंह ने अपनी सवारी का घोड़ा जसवंतसिंह को दिया और जिस घोड़े पर जसवंतसिंह आए थे वह हरीसिंह को दे उनका घोड़ा आप ले लिया।
थोड़ी देर तक यह मंडली उस पहाड़ी के नीचे बैठकर यह सोचती रही कि अब क्या करना चाहिए। आखिर सरदार चेतसिंह ने कहा, ‘‘पहले महारानी के पास चलकर यह सब हाल कहना चाहिए, शायद उनको पता हो कि उनका दुश्मन कौन है। हम लोग तो कुछ नहीं जानते कि महारानी का दुश्मन भी कोई है और न इसी बात का विश्वास होता है कि ऐसी नेक रहमदिल गरीब परवर और बुद्धिमान महारानी का कोई दुश्मन भी होगा।’’
आखिर यही राय ठीक रही और अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो सब उसी गांव की तरफ रवाना हुए। जसवंतसिंह ने सरदार चेतसिंह से बहुत पूछा कि वह महारानी कौन है और रनबीरसिंह से उनसे क्या वास्ता, परंतु सरदार चेतसिंह ने कुछ भी खुल के न कहा और न उनके इस सवाल का कोई जवाब दिया कि मैं तो लड़कपन से रनबीरसिंह के साथ हूं, उन्हें कभी कहीं आते-जाते नहीं देखा, तब महारानी से उनकी जान-पहचान कब हुई?
ये सब के सब सवार जो गिनती में जसवंतसिंह सहित इक्यावन थे, उस गांव में पहुंचे जिसका जिक्र ऊपर आ चुका है। यह गांव बहुत छोटा था और इसमें पचास-साठ घर से ज्यादे की बस्ती न होगी।
जसवंतसिंह ने पूछा, ‘‘यह गांव किसके इलाके में है?’’
सरदार चेतसिंह–हमारे ही सरकार का है।
जसवंत–इसी राह से वे पांचों सवार आए थे जिन्होंने रनबीरसिंह को गिरफ्तार किया है। अगर मुनासिब हो तो यहां के रहनेवालों से कुछ पूछिए।
चेतसिंह–नहीं, मेरी समझ में यह बात जाहिर करने लायक नहीं है।
जसवंत–जैसा मुनासिब समझिए।
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