उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
राजा–(दीवान से) क्यों सुमेरसिंह, तुम्हें कुछ पिछली बातें याद हैं?
दीवान–(हाथ जोड़ के) बहुत अच्छी तरह से, वे बातें इस योग्य नहीं कि भूल जाऊं।
राजा–अच्छा जो कुछ भूला भटका हो उसे भी याद कर लो क्योंकि कल तुम लोग एक अनूठा और आश्चर्यजनक तमाशा देखने वाले हो।
दीवान–सो क्या महाराज?
राजा–सो सब कल ही मालूम होगा जब मैं उस चित्रवाले कमरे में बैठा होऊंगा जिसमें कुसुम और रनबीर के सम्बन्ध की तसवीरें लिखी हुई हैं।
दीवान–तो अब महाराज को यहां से प्रस्थान करने में क्या विलम्ब है?
राजा–कुछ नहीं, मैं वहां चलने के लिए तैयार बैठा हूं और इसलिए कुसुम के पास कहला भेजा था (बाहर की तरफ मुंह करके) कोई है?
इतना सुनते ही एक चोबदार रावटी के अन्दर घुस आया और हाथ जोड़ कर सामने खड़ा हो गया।
राजा–(चोबदार से) मैं इसी समय तेजगढ़ जाने वाला हूं लश्कर से सिवाय तुम्हारे और कोई आदमी मेरे साथ न जाएगा।
चोबदार–जो आज्ञा
इतना कहकर चोबदार चला गया और थोड़ी देर में फिर हाजिर होकर बोला, ‘‘सवारी तैयार है।’’
राजा–(दीवान से) आप दोनों आदमी अकेले आए हैं या कोई साथ आया है?
|