उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
दीवान–हम दोनों के साथ तो केवल दो सवार आए हैं परन्तु तेजगढ़ के बहुत से आदमी महाराज के दर्शन की अभिलाषा से हम लोगों के पीछे-पीछे आए हैं और चले आ रहे हैं।
इतना सुनकर राजा साहब कुछ सोचने लगे और कुछ देर बाद सिर उठा कर चोबदार की तरफ देखा।
चोबदार–बहुत से आदमी महाराज के दर्शन की अभिलाषा से आए हुए हैं और चले ही आ रहे है छोटे दर्जे के आदमी दही दूध अन्न इत्यादि लेकर...
राजा–हमने तो तुमसे पहले ही कह दिया था।
चोबदार–जी महाराज, उस बात का प्रबन्ध पूरा-पूरा किया गया है,
राजा–तब कोई चिन्ता नहीं, अच्छा गोपीकृष्ण से कह दो कि सभी को जो तेजगढ़ से आए हैं, इनाम बांट दें और सूचना दे दें कि हम कल तुम लोगों को तेजगढ़ में ही देखेंगे।
इतना सुनते ही आधी घड़ी के लिए चोबदार बाहर चला गया, जब लौट आया तो महाराज उठ खड़े हुए और बीरसेन तथा दीवान साहब को साथ लिए हुए रावटी के बाहर निकले जहां कसे-कसाये तीन घोड़े नजर पड़े तथा मशालों की रोशनी भी बखूबी हो रही थी।
बीरसेन और दीवान साहब ने देखा कि उनके घोड़े जिन्हें वे लश्कर के छोर पर छोड़ आए थे उसी जगह खड़े हैं और उनके पास महाराज का घोड़ा खड़ा है। महाराज घोड़े पर सवार हो गये और उनकी आज्ञा पा बीरसेन तथा दीवान साहब भी घोड़े पर सवार हुए और महाराज के पीछे-पीछे तेजगढ़ की तरफ चल निकले। बीरसेन को इस बात से बड़ा ही आश्चर्य था कि इतने बड़े राजा होकर हम लोगों के साथ रात के समय अकेले तेजगढ़ की तरफ जा रहे हैं। थोड़ी दूर जाने के बाद पीछे से तीन घोड़ों के टापों की आवाज आई, बात की बात में मालूम हो गया कि साथ जाने वाला महाराज का चोबदार और दीवान साहब के दोनों सवार आ पहुंचे।
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