उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
सभी का जी राजा साहब के गुरुभाई की तरफ लगा हुआ था जिनकी जुबानी दोनों राजाओं का विचित्र हाल सुनने के लिए सब बेचैन हो रहे थे। अस्तु राजा साहब के गुरुभाई ने यों कहना प्रारम्भ किया–
‘‘राजा इन्द्रनाथ और राजा कुबेरसिंह बड़े प्रेमी और पूरे मित्र होने के कारण प्रायः एक साथ रहा करते थे, दोनों इन्हीं (गुरु बाबाजी की तरफ इशारा करके) गुरु महाराज के चेले हैं जिनका चेला मैं हूं। दोनों मित्रों को ज्योतिष पढ़ने का हद्द से ज्यादे शौक था और गुरु महाराज ने भी बड़े प्रेम से दोनों को ज्योतिष के ग्रन्थ पढ़ाए और ज्योतिष की गूढ़ बातें बताईं। उन दिनों इन दिनों मित्रों के पिता जीते थे और तेजगढ़ तथा बिहार का राज्य करते थे। एक दिन इन दोनों मित्रों ने एकान्त में बैठकर अपने-अपने पिता के विषय में ज्योतिष द्वारा भविष्यत् फल तैयार करना आरम्भ किया और जब दोनों को यह मालूम हुआ कि इन दोनों ही के पिता आज के चालीसवें दिन एक साथ संग्राम में मारे जाएंगे तो इन्हें बड़ा ही आश्चर्य और रंज हुआ। उन दिनों न तो किसी से लड़ाई लगी हुई थी और न उन दोनों राजाओं का कोई दुश्मन ही था। अतएव इस बात से दिनों को आश्चर्य हुआ कि इतनी जल्दी किस लड़ाई में दोनों के पिता मारे जाएंगे। इस समय इन दोनों मित्रों की अवस्था लगभग बीस बर्ष की होगी।
जब इन दोनों को अपने-अपने पिता का हाल हर तरह से मालूम हो गया तो दोनों ने इस बात को छिपा रखा और इस उद्योग में लगे कि चालीस दिन की जगह पचास दिन तक न तो किसी से लड़ाई होने पावे और न उसके पिता मारे जाएं, क्योंकि इन दोनों मित्रों को प्रारब्ध के साथ उद्योग पर बहुत कुछ भरोसा था।
उसके पांचवें दिन राजा इन्द्रनाथ की राजधानी में एक जौहरी के घर डाका पड़ा और राजा के कर्मचारियों ने तीन डाकुओं को और एक चौदह वर्ष की उम्र के लड़के को गिरफ्तार किया। उन तीनों डाकुओं में एक अपनी मण्डली का सरदार था और वह नौउम्र लड़का भी उसी का था। जब वे चारों दरबार में हाजिर किए गए तो उस समय राजा कुबेरसिंह के पिता भी उसी दरबार में मौजूद थे।
|