उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
कुबेरसिंह अपने मित्र की बात किसी तरह टाल नहीं सकते थे मगर एक खुटके ने उन्हें तरद्दुद में डाल दिया और सिर झुका कर सोचने लगे। जब कुछ देर हो गई तो इन्द्रनाथ ने पूछा, ‘‘आप क्या सोच रहे हैं?’’ इसके जवाब में कुबेरसिंह ने कहा कि मैं यह सोचता हूं कि आपने जो कुछ कहा उसे मैं जी जान से कर सकता हूं परन्तु विचार इस बात का है कि जब मैं लड़की की शादी रनबीर के साथ कर दूंगा तो आपके राज्य का मालिक मैं कैसे बन सकूंगा? आपकी आमदनी का एक पैसा भी मेरे काम आने से मैं लोक परलोक दोनों में से कहीं का न रहूंगा, और जब अपना राज्य अपनी लड़की को दे दूंगा तो उसमें से भी एक पैसा लेने लायक न रहूंगा, ऐसी अवस्था में आपकी आज्ञानुसार काम करके अपना जीवन निर्वाह मैं क्योंकर कर सकूंगा? साथ ही इसके कोई काम ऐसा भी न होना चाहिए जिसमें आपकी राजगद्दी चलाने के समय में लोगों को मेरे असल हाल का पता लग जाए।’’
कुबेरसिंह की बात सुनकर राजा इन्द्रनाथ ने कहा, ‘‘आपका सोचना बहुत ठीक है, मगर उसके लिए एक तरकीब हो सकती है अर्थात् कुसुम को राज्य दे देने और उसकी शादी करने के पहले ही आप अपने राज्य का कोई मौजा या परगना राज्य से अलग करके किसी ऐसे आदमी के सुपुर्द कर दीजिए जिस पर आप पूरा विश्वास कर सकते हों और जिसे आप इस भेद में भी शरीक करना पसन्द करते हों, बस वह आदमी आपके अलग किए हुए परगने की आमदनी किसी ढंग से आपको दिया करेगा और उसी से आप अपना काम चलाया करेंगे।
राजा कुबेरसिंह को यह बात बहुत पसन्द आई और वह गुप्तरीति से इसका बन्दोबस्त करने लगे। (दीवार की तरफ इशारा करके) यह देखिए उसी जमाने की तसवीर है, उन दिनों इन्द्रनाथ की स्त्री भी जो बड़ी पतिव्रता थी राजा साहब के साथ ही रहा करती थी और रनबीर के साथ खेलने के लिए वे जसंवत नामी एक लड़के को भी साथ रखते थे। जसवंत पर भी राजा साहब बड़ी कृपा रखते थे मगर उस कमबख्त ने अन्त में ऐसी करनी की कि जो सुनेगा उसके नाम से घृणा करेगा, अब तो वह मर ही गया उसका जिक्र करना फजूल है।
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