उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
कुछ दिन बाद जब एक रोज दोनों मित्र इकट्ठे हुए अर्थात जब कुबेरसिंह काशी में जाकर इन्द्रनाथ से मिले तो बात ही बात में पुनः ज्योतिषविद्या की चर्चा होने लगी, दोनों मित्रों की इच्छा हुई कि एक दफे पुनः उद्योग करके अपने नसीब को देखना चाहिए और मालूम करना चाहिए कि अब आगे क्या होने वाला है। आखिर ऐसा ही हुआ, तीन दिन के उद्योग में दोनों ने कई वर्ष का फल तैयार कर लिया जिससे मालूम हुआ कि इन्द्रनाथ और कुबेरसिंह दोनों साधु हो जाएंगे, रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी दोनों के लिए राज-सुख बदा नहीं है, कुसुम को कोई राजा जबर्दस्ती ब्याह ले जाएगा इसके अतिरिक्त और भी कई बातें मालूम हुईं। राजा इन्द्रनाथ ने कुबेरसिंह से कहा कि भाई पहली दफे तो हम लोग धोखे में रह गये परन्तु अबकी दफे देखना चाहिए कि उद्योग की सहायता से हम लोग अपने प्रारब्ध के साथ क्या कर सकते हैं, हम तो अब फकीर हो ही चुके हैं मगर तुम कदापि फकीर न होना, यद्यपि राजा बने रहने की इच्छा न भी रहे तो टेक निबाहने के लिए अपने देश के मालिक बने ही रहना। मालूम हुआ है कि कुसुम को कोई राजा जबर्दस्ती ब्याह ले जाएगा, सो तुम अभी ही कुसुम की शादी छिपे-छिपे रनबीर के साथ यहां ही कर दो और दो-तीन आदमियों को यह भेद बता दो जिसमें समय पर काम आवे और कोई गैर आदमी इस भेद को जानने न पावे। अपने घर में एक चित्रशाला बनवाओं जो इन भेदों को समय पड़ने पर खोल दे, उस घर में हमेशा ताला बन्द रहे और उसकी ताली किसी योग्य पुरुष के सुपुर्द रहे, इसके बाद तुम अन्तर्धान हो जाओ फिर सूरत बदल कर हमारी राजगद्दी पर बैठो देखो कि प्रारब्ध और उद्योग में कैसी निपटती है, हमारी राजगद्दी पर बैठ रहने से तुम कुसुम और रनबीर की हिफाजत भी कर सकोगे, इत्यादि।
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