उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
गुरु–जल्दी न करो, वे आराम से नीचे बैठी हुई हैं, जहां तक हम समझते हैं सिवाय इन लोगों के जो यहां मौजूद हैं और किसी को भी तुम लोगों का हाल मालूम न होना चाहिए।
कुबेर–सो तो ठीक है।
इन्द्रनाथ–बेशक हम लोगों का हाल किसी को मालूम न होना चाहिए।
मन्मथसिंह के घर की औरतों का नाम सुनकर कुसुम कुमारी के दिल की अजीब हालत हुई, अगर बड़े लोग वहां उपस्थित न होते या रनबीरसिंह के बदले में कोई दूसरा आदमी इस किस्से को सुनाता होता तो कुसुम कुमारी अपने दिल को न रोक सकती कुछ-न-कुछ जरूर पूछती और उन लोगों को देखने की इच्छा प्रकट करती मगर इस समय लज्जा ने उसे रोका और वह ज्यों की त्यों चुपचाप बैठी रहीं।
कुबेर–(गुरु जी से) क्या उन औरतों को इन्द्रनाथ का हाल मालूम नहीं है।
गुरु–अगर मालूम भी है तो केवल इतना ही कि यह कैदी वास्तव में राजा इन्द्रनाथ है जिन्हें छुड़ाने के लिए रनबीरसिंह आए थे।
कुबेर–(रनबीर से) अच्छा तब क्या हुआ और उन औरतों को तुमने किस तरह छुड़ाया?
|