उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रनबीर–(कुबेर से) जैसे ही हम लोग डाकुओं की सरहद के बाहर हुए वैसे ही आपके पांच सौ फौजी सिपाही जिन्हें गुरु महाराज की आज्ञानुसार आपने भेजा था मिले, उस समय मैंने रामसिंह से पूछा कि अब क्या करना चाहिए? यदि कहो तो इस छोटी-सी फौज को लेकर मैं पीछे की तरफ लौटूं और जितने डाकू वहां हैं सभी को मारकर बाकी कैदियों को भी छुड़ाऊं, रामसिंह ने जवाब दिया कि बेशक ऐसा ही करना चाहिए, डाकू सरदार मारा ही गया और जो सभी का अफसर था आपके साथ हूं अस्तु अब वे लोग कुछ भी नहीं कर सकते, आपकी राय अगर ढीली भी हो तो मैं जोर देकर कहता हूं कि लौटिए और उन कमबख्तों को मारिए जिसमें भविष्य के लिए मुझे किसी तरह का डर न रहे। आखिर ऐसा ही हुआ, बस हम लोग उस छोटी सी फौज को साथ लेकर लौट पड़े, और डाकुओं के उस मकान को घेर लिया जिसमें पिताजी कैद थे। रामसिंह की बहादुरी की मैं जहां तक तरीफ करूं उचित है, उसने कोठरियों और तहखानों में घुस-घुस करके डाकुओं को खोज निकाला और मारा। मेरी इच्छा तो बालेसिंह को वहां से ले आने की थी मगर उस मार-काट में रामसिंह की तलवार ने उसका सर भी अलग कर दिया और उसके साथियों में से भी किसी को न छोड़ा जो उसकी खबर उसके घर पहुंचाता।
दीवान–अच्छा हुआ जो वह कमबख्त मारा गया। उसने हम लोगों को बड़ा ही तंग किया था, परसाल उसने कुसुम से अपने शादी के लिए कितना जोर मारा और दिक किया कि मैं कह नहीं सकता। जब उसे रनबीरसिंह का हाल मालूम हुआ तो उसने अपने इलाके में रनबीरसिंह को फंसाने के लिए पहाड़ पर कुसुम तथा रनबीर की मूरतें बनाई क्योंकि उसे यह खबर लग चुकी थी। आजकल शिकार खेलते हुए रनबीरसिंह वहां तक आया करते हैं। यद्यपि हम लोगों को उसकी खबर हो गई थी मगर सिवाय निगरानी के हम लोग और कुछ भी नहीं कर सकते थे, अगर साल भर पहले ही हम रनबीरसिंह और जसवंतसिंह के हाल से कुसुम को होशियार न कर दिए होते और दोनों की तसवीरें कुसुम को न दिखा दिए होते तो बड़ा ही गड़बड़ मचता। अच्छा हुआ जो उस कमबख्त को रामसिंह ने जहन्नुम में पहुंचाया।
|