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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

इन्द्रनाथ–कुसुम को अपनी शादी का पूरा-पूरा हाल कब मालूम हुआ?

दीवान–दो साल से ऊपर हुआ, जब कुसुम कुमारी एक दिन ताला तोड़कर इस कमरे में चली आई थी क्योंकि वह बराबर सभी से इस कमरे का हाल पूछती थी मगर कोई कुछ बताता न था, आखिर एक दिन क्रोध में आकर उसने ताला तोड़ ही डाला, और जब इन तसवीरों को देखा तो मुझे बुलवा भेजा और इन तसवीरों का हाल पूछा, लाचार होकर मुझे कुछ थोड़ा-सा हाल कहना ही पड़ा। मैंने केवल उसकी शादी के विषय में थोड़ा-सा हाल कहा और रनबीर तथा जसवंत की तस्वीर का परिचय देकर बताया कि वह रनबीरसिंह राजा नारायणदत्त का लड़का है। बस इससे ज्यादे कुछ हाल कुसुम कुमारी को मालूम न हुआ।

कुबेर–मुझे याद है, आपने एक दिन मुझसे मिलकर यह बात कही भी थी। (रनबीर से) अच्छा तब क्या हुआ?

रनबीर–डाकुओं के मारने के बाद उनका माल असबाब सब लूट लिया और उन लोगों को भी जो उनके यहां कैद थे छुड़ा गुरु महाराज के स्थान पर आए। गुरु महाराज की आज्ञानुसार कई फौजी आदमियों को साथ करके और खर्च इत्यादि देकर सब कैदियों को उनके घर भेजवा दिया। इसके बाद गुरु महाराज ने (कुबेरसिंह की तरफ देखकर) लालसिंह को जो उन फौजी सिपाहियों का अफसर था और जिसे आपने गुरु महाराज की आज्ञानुसार काम करने की आज्ञा दी थी बाकी फौजी आदमियों के सहित आपके पास लौट जाने की आज्ञा दी और उसी के हाथ एक पत्र भी आपको भेजा जिससे आपको हम लोगों का सब हाल मालूम हुआ होगा।

इतना कहकर रनबीरसिंह चुप हो गए। कुसुम कुमारी उठकर पुनः अपने पिता के पैरों पर गिर पड़ी और बोली, ‘‘पिता! अब तो तुम मुझसे जुदा न होओगे?’’ और रोने लगी।

 

कुसुम कुमारी के रोने ने सभी का कलेजा पानी कर दिया, कुबेरसिंह इन्द्रनाथ और गुरु महाराज ने समझा-बुझाकर उसे शान्त किया। इसके बाद कुसुम और बीरसेन ने उस रास्ते को बड़े गौर से देखा जिधर से इन्द्रनाथ वगैरह इस कमरे में आये थे। मालूम हुआ कि वह छत का छोटा-सा टुकड़ा जंजीरों के सहारें टंगा हुआ रहता है और नीचे कमरे में जंजीरों को खींचने और ढीला करने के लिए चर्खियां लगी हुई हैं। इसी कमरे के आगे सरदार चेतसिंह के रहने का कमरा था।

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