उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
यह हुक्म पाकर सरदार चेतसिंह उठ खड़े हुए और पर्दे की तरफ झुककर सलाम करने के बाद बाहर रवाना हो गए।
हमारे जसवंतसिंह बेचारे चुपचाप ज्यों के त्यों हक्का-बक्का बैठे रहे, मगर थोड़ी देर बाद कई लौड़ियों ने अंदर से आकर उनसे कहा, ‘‘आप उठिए और नहाने धोने की फिक्र कीजिए क्योंकि आज ही आपको हम लोगों के साथ रनबीरसिंह की खोज में जाना होगा। हम लोग उनके दुश्मन को जानते हैं, आप किसी तरह की चिंता न करें।’’
जसवंतसिंह ने जवाब दिया, ‘‘हाय, मुझे बिलकुल नहीं मालूम कि इस वक्त मेरे दोस्त पर क्या आफत गुजरती होगी? उसको नहाने-धोने का भी मौका मिला होगा या नहीं? उसने क्या खाया-पीया होगा? हाय मुझे विश्वास है कि उसके दिमाग से अभी तक पागलपन की बू न गई होगी, उसी तरह बकना-झकना जारी होगा, अब तो उसके सामने वह सत्यानाशी मूरत भी नहीं, जिसे देख वह खाना-पीना भूल गया था! अब न मालूम उसकी क्या दशा होगी, अगर तुम लोग यह जानती हो, उसे फलाना आदमी ले गया है, तो ईश्वर के लिए जल्दी बता दो कि मैं उसके पास पहुंचकर जिस तरह बने उसे कैद से छुड़ाऊं या अपनी भी जान उसके कदमों पर न्यौछावर करूं। मेरे नहाने-धोने खाने-पीने की फिक्र मत करो इसका कुछ अहसान मेरे ऊपर न होगा। अगर मेरे दोस्त के दुश्मन का पता बता दोगे तो मैं जन्म भर तुम्हारा ताबेदार बना रहूंगा, बिना खरीदे गुलाम रहूंगा, चाहे मुझसे एकरार लिखा लो पर यह ईश्वर के लिए जल्द बताओ कि वह कहां है और किस दुष्ट ने उसे दुःख दिया है? हाय अभी तक उसके ऊपर किसी तरह की तकलीफ नहीं पड़ी थी। न मालूम वह कौन-सी सत्यानाशी घड़ी थी जिसमें हम दोनों घर से बाहर निकले थे। उसके मां-बाप की क्या दशा होगी? हाय, उनके एक ही यह लड़का है, दूसरी कोई औलाद नहीं, जिसे देख उनके जी को तसल्ली हो!
इतना कह जसवंतसिंह चुप हो गए और उनकी आंखों से आंसूओं की बूंदे गिरने लगीं।
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