उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
लौड़ियों के बहुत कुछ कहने और समझाने-बुझाने पर वे वहां से उठे, स्नान किया और कुछ अन्य मुंह में डालकर जल पिया, इसके बाद फिर हाथ जोड़ और रो-रोकर लौंडियों से पूछने लगे–
‘‘परमेश्वर के लिए सच बता दो, क्या तुम रनबीरसिंह के दुश्मन को जानती हो? अगर जानती हो तो बताने में देरी क्यों करती हो? हाय, कहीं तुम लोग मुझे धोखा तो नहीं दे रही हो!!’’
रनबीरसिंह की जुदाई में जसवंतसिंह को हद्द से ज्यादे दुःखी देख लौड़ियों से रहा न गया, आपस में राय करके एक लौंडी ने जाकर महारानी से उनका सब हाल कहा और जवाब पाने की उम्मीद में सामने खड़ी ही रहीं।
बहुत देर तक सोचने के बाद महारानी ने उस लौंडी को हुक्म दिया, ‘‘अच्छा जाओ, जसवंतसिंह को मेरे पास ले आओ, मैं उसे समझाऊंगी, अब तो पर्दा खुल ही गया और बेहयाई सिर पर सवार हो ही चुकी, तो रनबीरसिंह के दोस्त का सामना करने में ही क्या हर्ज है!’’
हुक्म पाकर लौंडी दौड़ी हुई गई और अपने साथ वालियों से महारानी का हुक्म कहा। वे सब जसवंतसिंह को साथ ले महारानी के पास चलीं।
जिस दालान में पहले सरदार चेतसिंह के साथ जसवंतसिंह बैठाए गए थे उसी के साथ पीछे की तरफ महारानी का खास महल था। लौडियां जसवंतसिंह को साथ लिए हुए दूसरी राह से उसके अंदर गईं। इस मकान को जसवंतसिंह ने बहुत ही अच्छी तरह से सजा हुआ पाया और यहीं पर एक छोटे से कमरे में स्याह गद्दी के ऊपर गावतकिए के सहारे बाईं हथेली पर गाल रखे बैठी हुई महारानी दिखाई पड़ी।
महारानी को देखते ही जसवंतसिंह ने जोर से ‘हाय’ किया और साथ ही बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा।
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