उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
वालेसिंह ने यह पत्र उसी समय अपने एक विश्वासी और चालाक आदमी के हाथ महारानी की तरफ रवाना किया। उस आदमी के जाने के बाद रनबीरसिंह ने बालेसिंह से पूछा–‘‘क्यों बालेसिंह, यह महारानी कौन है? और मुझे तुमने क्यों गिरफ्तार कर रक्खा है? देखो सच कहना, झूठ मत बोलना!’’
बालेसिंह ने कहा, ‘‘ऐसा ही है तो लीजिए सुन ही लीजिए, आखिर मैं कहां तक और किस-किससे डरा करूंगा। महारानी चाहे जो भी हों आज मेरे और जसवंत के तरह के सैकड़ों ही उनके लिए जान दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने सिवाय तुम्हारे किसी से भी शादी करना मंजूर न किया–जिसने जिद्द की उसी की दुर्गति कर डाली। अभी तक मेरे पास उनका लिखा पत्र मौजूद है जिसमें उन्होंने साफ लिखा है कि सिवाय रनबीरसिंह के मैं किसी को कुछ भी नहीं समझती। अपने पत्र का ऐसा जवाब पाकर मुझे भी बड़ा ही गुस्सा आया और दिल में ठान लिया कि अगर ऐसा ही है तो फिर चाहे जो हो मैं भी रनबीरसिंह से और उससे मुलाकात न होने दूंगा! सिवाय इसके!’’
बालेसिंह की बातें सुनते-सुनते एकाएक रनबीरसिंह को बड़ा ही क्रोध चढ़ आया। वह आगे कुछ और कहना चाहता था मगर उसकी यह आखिरी बात कि, ‘‘मैं भी रनबीरसिंह से और उससे मुलाकात न होने दूंगा।’’ सुनकर उठ खड़े हुए, अपने गुस्से को जरा भी न रोक सके, और उसके गले में हाथ डाल ही तो दिया। दोनों में खूब कुश्ती और मुक्कों की मार होने लगी, यहां तक कि दोनों के सिर और बदन से खून बहने लगा। आखिर रनबीरसिंह ने बालेसिंह को उठाकर जमीन पर पटक दिया और उसकी छाती पर चढ़ बैठे।
अभी तक बालेसिंह के आदमी जो वहां मौजूद थे चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे थे। जब अपने मालिक की पीठ जमीन पर देखी और उम्मीद हो गई कि अब रनबीरसिंह उसके गले को दबा कर मार ही डालेंगे, तब एकदम रनबीरसिंह के ऊपर टूट पड़े, यहां तक कि बालेसिंह मौका पाकर हाथ से निकल गया और उसने साथियों की मदद से उसने रनबीरसिंह को बांध लिया।
अब रनबीरसिंह की आजादी बिल्कुल जाती रही, वे कैदी हो गए। हथकड़ी बेड़ी डालकर एक कोठरी में बन्द कर दिए गए। अभी तक बालेसिंह को उनकी खूबसूरती और हाथ-पैरों की मुलायमियत देखकर उनके इतने ताकतवर, बहादुर और जवांमर्द होने की उम्मीद बिलकुल न थी, अपने सामने वह किसी को भी कुछ नहीं समझता था, मगर आज रनबीरसिंह ने उसकी शेखी भुला दी, बल्कि अपना रोग उसके दिल पर जमा दिया।
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