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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी


नौवां बयान

बालेसिंह का आदमी रनबीरसिंह की चिट्ठी लेकर महारानी की तरफ रवाना हुआ, मगर जब उस शहर में पहुंचा तब सुना कि महारानी बहुत बीमार हैं और इन दिनों बाग में रहा करती हैं, दवा इलाज हो रहा है, बचने की कोई उम्मीद नहीं, बल्कि आज का दिन कटना भी मुश्किल है।

वह आदमी जो चिट्ठी लेकर गया था निरा सिपाही न था बल्कि पढ़ा-लिखा होशियार और साथ ही चालाक भी था। ऐसे मौके पर महारानी के पास पहुंचकर खत देना मुनासिब न जान उसने सराय में डेरा डाल दिया और सोच लिया कि जब महारानी की तबीयत ठीक हो जाएगी तब यह खत देकर जवाब लूंगा।

सराय में डेरा दे और कुछ खा-पीकर वह शहर में घूमने लगा यहां तक कि उस बाग के पास जा पहुंचा जिसमें महारानी बीमार पड़ी थीं। अपने को उसने बिलकुल जाहिर न किया कि मैं कौन हूं, किसका आदमी हूं और क्यों आया हूं, मामूली मुसाफिर की तरह घूमता फिरता रहा। शाम होते-होते बाग के अंदर से रोने और चिल्लाने की आवाज आई और धीरे-धीरे वह आवाज बढ़ती ही गई, यहां तक कि कुछ रात जाते-जाते बाग से लेकर शहर तक हाहाकार मच गया, कोई भी ऐसा न था जो रो-रोकर अपना सिर न पीट रहा हो! शहर भर में अंधेरा था, किसी को घर में चिराग जलाने की सुध न थी। जिसको देखिए वही ‘हाय महारानी! कहां गईं! अब मैं किसका होकर रहूंगा? पुत्र की तरह अब कौन मानेगा? किस भरोसे पर जिंदगी कटेगी!’ इत्यादि कह-कहकर रोता चिल्लाता सर पीटता और जमीन पर लोटता था।

वह आदमी जो चिट्ठी लेकर गया था घूम-घूमकर यह कैफियत देखने और पूछताछ करने लगा। मालूम हो गया कि महारानी मर गईं, उसे बहुत ही रंज हुआ और अफसोस करता सराय की तरफ रवाना हुआ। वहां भी वही कैफियत देखी, किसी को आराम या चैन से न पाया, लाचार होकर वहां से भी लौटा और शहर से बाहर जा मैदान में एक पेड़ के नीचे रात काटी। सवेरे वापस हो अपने मालिक बालेसिंह की तरफ रवाना हुआ।

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