उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रनबीर–इस वक्त तुम्हारी फौज कहां है?
सरदार–इसका जवाब मैं कुछ नहीं दे सकता, क्योंकि आज कई दिनों से कई ठिकाने पर फौजी आदमी बैठे हुए हैं। बालेसिंह की कैद से आपके छूटने की खबर जब मुझको लग चुकी है तब मैंने अपने जासूसों को चारों तरफ रवाना किया है और एक ठिकाने का निशान देकर जहां आज मैं आपको ले चलूंगा ताकीद कर दी है कि जहां तक जल्द हो सके उसी जगह सभी को इकट्ठा करो, इसके बाद अपने सरकार में भी सब बातों की इत्तिला भेज दी थी?
रनबीर–इसके पहले जो चिट्ठी एक सवार के हाथ मुझे मिली थी वह भी तो शायद तुम्हारे सरकार ही के हाथ की लिखी थी?
सवार–जी हां, मगर वह कई दिन पहले की लिखी हुई थी और उस सवार को हुक्म था कि जब आप छूटें उसी वक्त यह चिट्ठी आपको दे।
रनबीर–तो अब उस ठिकाने चलना चाहिए जहां फौज इकट्ठी होगी?
सवार–जी हां, मैं आपकी सवारी का घोड़ा और कपड़े तथा हर्बे वगैरह भी लेता आया हूँ और कुछ खाने का भी सामान लाया हूं आप भोजन कर ले तो चलें।
रनबीरसिंह ने खुशी और जल्दी के मारे भोजन करने से इनकार किया मगर उस सवार की जिद्द से जिसका नाम बीरसेन था। हाथ-मुंह धो कुछ खाना ही पड़ा, इसके बाद उन चीजों में से जो वह सवार इनके लिए लाया था जो कुछ जरूरी समझा लेकर घोड़े पर सवार हुए और वहां से रवाना हुए।
उन सवारी के साथ-साथ कई कोस तक चले गए। आधी रात जाते-जाते एक मैदान में पहुंचे जिसके चारों तरफ घना जंगल और बीच में बहुत से नीम के दरख्त थे, वहां सभी ने घोड़े की बाग रोकी और उस सवार ने रनबीरसिंह से कहा, ‘‘बस यही ठिकाना है जहां सभी को इकट्ठे होने के लिए कहा गया है।’’
इन सभी को वहां पहुंचे अभी कुछ ही देर हुई होगी कि खेमों और डेरों से लदे हुए कई ऊंट उस जगह आ पहुंचे जिनके साथ बहुत से आदमी थे। रात चांदनी होने के कारण रोशनी की कुछ जरूरत न थी। फर्राशों ने खेमा डेरा खड़ा करना शुरू किया और तब तक कुछ-कुछ फौज भी इकठ्टी होने लगी। रनबीरसिंह ने बीरसेन से पूछा, ‘‘आपकी फौज यहां कितनी इक्ट्ठी होगी और उसका सेनापति कौन है?’’
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