उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रनबीर–फिर क्या करना चाहिए?
सवार–देखिए मैं अभी पता लगाता हूं।
यह कह उस सवार ने अपनी कमर में से एक छोटी-सी बिगुल निकालकर बजाई और इधर-उधर घूम-घूमकर देखने लगा। थोडी ही देर बाद एक रोशनी दिखालाई पड़ी, जिसे देखते ही इसने फिर बिगुल फूंकी। अब वह रोशनी इन्हीं की तरफ आने लगी। धीरे-धीरे यह मालूम हुआ कि एक आदमी हाथ में मशाल लिए चला आ रहा है। जब वह इनके पास आया तो रोशनी में इन दोनों की सूरत देख बोला, आइए हम लोग बड़ी देर से राह देख रहे हैं।’’
यहां से फिर घोड़े पर सवार हो मशाल की रोशनी में रवाना हुए। थोड़ी दूर जाकर एक खुले मैदान में पहुंचे। रनबीरसिंह खड़े हो चारों तरफ देखने लगे मगर अंधेरे में कुछ मालूम न हुआ। हां इतना जान पड़ा कि जंगल के बीच में यह एक छोटा-सा मैदान है जिसमें दस-पांच-बड़े-बड़े दरख्तों के सिवाय छोटे-छोटे जंगली पेड़ बहुत कम हैं।
थोड़ी दूर और बढ़कर पत्तों से बनी एक झोंपड़ी नजर पड़ी जिसके चारो तरफ पत्तों ही की टट्टियों से घेरा किया हुआ था। टट्टी के बाहर चारों तरफ सैकड़ों ही आदमी मैदान में पड़े थे तथा छोटी-छोटी और भी कुटियां पत्तों की बनी इधर-उधर नजर आ रही थीं।
रनबीरसिंह के पहुंचते ही सब-के-सब उठ खड़े हुए और कई आदमियों ने उनके सामने आकर अदब के साथ सलाम किया। एक ने सवार से कहा, ‘‘उधर चलिए, वहां सोने बैठने का सब सामान दुरुस्त है।’’
सवार के साथ रनबीरसिंह दूसरी तरफ गए जहां साफ जमीन पर फर्श लगा हुआ था। घोड़े से उतरकर फर्श पर जा बैठे, खिदमत के लिए कई खिदमतगार हाजिर हुए, कोई पानी ले आया, कोई पंख झलने और कोई पैर दबाने लगा।
इतने ही में एक लौंडी आई और हाथ जोड़कर रनबीरसिंह से बोली, आपके आने की खबर सरकार को मिल चुकी है। अब रात बहुत थोड़ी बाकी है, इसी जगह दो घंटे आराम कीजिए, सुबह को मिलना मुनासिब होगा। यह कह कर जवाब की राह न देख लौंडी वहां से चली गई।
|