उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
दीवान साहब ने एक जासूस के हाथ बीरसेन के पास चिट्ठी भेजी जिसमें लिखा हुआ था, ‘‘रनबीरसिंह के जख्मी होने से हम लोगों की बनी बनाई बात बिगड़ गई, इतने मेहनत और तरद्दुद से फौज का इकट्ठा करना बिलकुल बेकार हो गया।
एकाएक चढ़ाई करने के पहले ही न मालूम किस दुष्ट ने बालेसिंह को होशियार कर दिया और वह अपनी फौज लेकर इस किले पर चढ़ आया जिसकी कोई उम्मीद न थी। अब हम लोग किला बंद करके जो कुछ थोड़े बहादुर यहां मौजूद हैं उन्हीं को सफीलों पर चढ़ाकर दुश्मन की फौज पर गोला बरसाते हैं, जहां तक जल्द हो सके तुम फौज लेकर उस गुप्त राह से हमारे पास पहुंचो। अफसोस, हमें यकीन नहीं है कि यह चिट्ठी तुम्हारे पास पहुंच सकेगी क्योंकि जहां तक हम समझ सकते हैं, पहर-दो-पहर के अंदर ही बालेसिंह इस किले को घेर लोगों की आमदफ्तर बंद कर देगा। ईश्वर मदद करे और यह खत तुम्हारे पास पहुंच जाए तो आज के तीसरे दिन शनीचर को उसी सुरंग की राह से जिसका दरवाजा आधी रात के समय खुला रहेगा तुम मेरे पास फौज लिए हुए पहुंच जाओ। रनबीरसिंह अभी तक बेहोश पड़े हैं।’’
इस चिट्ठी को रवाना कर दीवान साहब ने किला बंद करने का हुक्म दे दिया, शहरपनाह की दीवारों और बुर्जियों पर तोपें चढ़ने लगीं।
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