उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
यह औरत बला की खूबसूरत थी, इसके हर एक अंग मानों सांचे में ढले हुए थे। इसके गालों पर गुलाब के फूलों की सी रंगत थी। इसके ओंठ नाजुक और पतले थे मगर ऊंची सांस लेकर जब वह अपना निचला ओंठ दबाती तब इसके चेहरे की रंगत फौरन बदल जाती और गम के साथ ही गुस्से निशानी पाई जाती। इसके नाजुक हाथों में स्याह चूड़ियां और हीरे के कड़े पड़े हुए थे, उंगलियों में दो-चार मानिक की अंगूठियां भी थीं जिनकी चमक कभी-कभी बिजली की तरह उसके चेहरे पर घूम जाती थी। हुस्न और खूबसूरती के साथ ही चेहरे पर गजब और गुस्से की निशानी भी पाई जाती थी। इसके तेवरों से मालूम होता था कि यह जितनी हसीन है उतनी ही बेदर्द और जालिम भी है। तेवर बदलने के साथ ही जब कभी यह अपने ओंठों को न मालूम तौर पर हिलाती तो साफ मालूम हो जाता कि इसके दिल में खुटाई भी परले सिरे की भरी हुई है। मगर वो सब जो कुछ भी हो लेकिन देखने में इसकी छवि बहुत ही प्यारी मालूम होती थी।
थोड़ी देर तक सन्नाटा रहने के बाद उस औरत ने जिसका हुलिया ऊपर लिख आए हैं, ऊंची सांस ले शमादान की तरफ देखते हुए कहा–‘‘बहन मालती, तुम सच कहती हो। मैं खूब जानती हूं कि बीरसेन का दर्जा किसी तरह कम नहीं है, महारानी के फौज का सेनापति है, उसकी वीरता किसी से छिपी नहीं है और मुझे भी बहुत चाहता है, मगर क्या करूं, मेरा दिल तो दूसरे ही के फंदे में जा फंसा है और अपने काबू में नहीं है।’’
मालती–ठीक है मगर तुम्हारे पिता ने तो बीरसेन के साथ तुम्हारा संबंध कर दिया है और सभी को यह बात मालूम भी हो गई है कि कालिंदी की शादी बहुत जल्द बीरसेन के साथ होगी।
कालिंदी–जो हो, पर मुझे यह मंजूर नहीं है।
मालती–भला यह तो सोचो कि इस समय बेचारी महारानी पर कैसा संकट आ पड़ा है। तुम्हारे पिता दीवान साहब किस तरह महारानी के नमक का हक अदा कर रहे है, और दुश्मन से जान बचाने की फिक्र में पड़े हैं। अफसोस कि तुम उनकी लड़की होकर दुश्मन ही से मुहब्बत किया चाहती हो!! खैर, इसे जाने दो, तुम खूब जानती हो कि जसवंतसिंह महारानी पर आशिक है और उन्हीं के लिए इतना बखेड़ा मचा रहा है, वह जानता भी नहीं कि तुम कौन हो, तुम्हारी सूरत तक कभी उसने नहीं देखी, फिर किस उम्मीद पर तुम ऐसा करने का हौसला रखती हो? उसे क्या पड़ी है जो तुमसे शादी करे।
|