उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
कालिंदी–लड़ाई के वक्त सफर में कोई फौजीबहादुर ऐसा हुक्म जारी नहीं कर सकता, ऐसे मौके पर आराम को चाहनेवाला कभी फायदा नहीं उठायेगा, फौज इस वक्त दुश्मन के मुकाबले में पड़ी हुई है। मुझे विश्वास नहीं होता कि जसवंतसिंह ने काम पड़ने पर भी नींद से जगाने की मनाही कर दी हो।
पहरेवाला–तुम्हारा कहना ठीक है, ऐसा हुक्म तो नहीं दिया गया है, मगर...
कालिंदी–मगर-तगर की कोई जरूरत नहीं, तुम अभी जाकर जगाओ नहीं तो मैं तुरंत लौट जाऊंगा और इसका नतीजा तुम लोगों के हक में बहुत बुरा होगा।
लाचार पहरेवालों ने खेमे के अंदर पैर रखा, आहट पाते ही जसवंतसिंह की आंख खुल गई और पहरेवाले सिपाही को अंदर आते देख बोला–जसवंत–क्यों क्या है?
पहरेवाला–हुजूर एक आदमी आया है, वह कहता है कि महारानी का संदेशा लाया हूं अगर फौरन खबर न करोगे तो मैं वापस चला जाऊंगा।
जसवंत–(ताज्जुब से) महारानी कुसुम कुमारी का संदेशा लाया है! ठीक है मालूम होता है रनबीर चल बसा, तभी राह पर आई है, अच्छा उसे हाजिर करो।
कालिंदी खेमे के अंदर पहुंचाई गई, उसे देखते ही जसवंत उठ बैठा और उसने जल्दी में पहली बात यही पूछी, ‘‘कहो रनबीरसिंह की क्या-खबर है? महारानी का अब क्या इरादा है?’’
कालिंदी–रनबीरसिंह अभी तक बेहोश पड़े हैं, मगर हकीमों के कहने से मालूम होता है कि दो-एक दिन में होश में आ जाएंगे, मेरे हाथ महारानी ने कोई संदेशा नहीं भेजा है, मैं उनसे लड़कर यहां आया हूं, आप मेरी खातिर करोगे तो दो ही दिन में यह किला फतह करा दूंगा, इस तरह आप सालभर में भी इसे पतह नहीं कर सकते। महारानी के यहां मेरा उतना ही अख्तियार है जितना बालेसिंह के यहां आपका।
इतना कह अपने मुंह से नकाब हटा चारपाई के पास जा खड़ी हुई, उसकी बातों का जवाब जसवंत क्या देगा इसका कुछ भी इंतजार न किया।
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