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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

कुसुम ने रनबीरसिंह की तरफ देखकर कहा, ‘‘सबसे ज्यादे फिक्र तो मुझे बीरसेन की है। उसको कालिंदी से बहुत ही मुहब्बत थी, बल्कि थोड़े ही दिनों में उन दोनों की शादी होनेवाली थी। अब वह यह हाल सुनकर कितना दुःखी होगा? एक तो मैं उसे अपने छोटे भाई की तरह मानती हूं, दूसरे इस समय ज्यादे भरोसा बीरसेन ही का है। तुम्हारी यह दशा है, ईश्वर ने जान बचाई यही बहुत है, मैं औरत ठहरी, दीवान साहब बेचारे लड़ने-भिड़ने का काम क्या जानें, सो उन्हें भी आज लड़की का ध्यान बेचैन किए होगा, सिवाय बीरसेन के बालेसिंह का मुकाबला करनेवाला आज कोई नहीं है! हाय, सत्यानाशी मुहब्बत आज उसे भी बेकाम करके डाल देगी, देखें कालिंदी के गम में उसकी क्या दशा होती है!’’

रनबीर–क्या बालेसिंह के चढ़ आने की कोई खबर मिली है?

कुसुम–खबर क्या, उसकी फौज इस किले के मुकाबले में आ पड़ी है जिसका सेनापति आपका दोस्त (मुसकराकर) जसवंतसिंह बनाया गया है।

रनबीर–क्या यहां तक नौबत पहुंच गई!!

कुसुम–जी हां, लाचार होकर दीवान साहब ने किला बंद करने का हुक्म दे दिया है और सफीलों पर से लड़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं, शायद बीरसेन को भी बुलवा भेजा है।

रनबीर–(कुछ सोचकर) खैर क्या हर्ज है, दरियाफ्त करो कोई बीरसेन के पास गया है या नहीं, वह आ जाए तो मैं खुद मैदान में निकलकर देखता हूं कि बालेसिंह किस हौसले का आदमी है और जसवंत मेरा मुकाबला किस तरह करता है।

कुसुम–क्या ऐसी हालत में तुम लड़ाई पर जाओगे?

रनबीर–क्या चिंता है?

कुसुम–तुममें तो उठकर बैठने की भी ताकत नहीं है!

रनबीर–ताकत तभी तक नहीं है जब तक गद्दी और तकिए के सहारे बैठा हूं, जिस वक्त जेई और खौद पहनकर हर्बे बदन पर लगाऊंगा और नेजा हाथ में लेकर मैदान में निकलूंगा उस वक्त देखूंगा कि ताकत क्योंकर नहीं आती। क्षत्रियों के लिए लड़ाई का नाम ही ताकत और हौंसला बढ़ानेवाला मंत्र है!

कुसुम–(हाथ जोड़कर और ऊपर की तरफ देखकर दिल में) हे ईश्वर, तू धन्य है! मुझ पर क्या कम कृपा की कि ऐसे बहादुर के हाथ में मेरी किस्मत सौंपी!

रनबीर–(एक लौंडी से) जाकर पूछ तो बीरसेन के पास कोई गया है या नहीं?

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