उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
पंद्रहवां बयान
महारानी कुसुम कुमारी के लिए आज का दिन बड़ी खुशी का है क्योंकि रनबीरसिंह की तबीयत आज कुछ अच्छी है। वह महारानी के कोमल हाथों की मदद से उठकर तकिए के सहारे बैठे हैं और धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं। हकीमों ने उम्मीद दिलाई कि दो-चार दिन में इनका जख्म भर जाएगा और ये चलने-फिरने लायक हो जाएंगे।
घंटेभर से ज्यादे दिन न चढ़ा होगा। रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी बैठे बातें कर रहे थे कि एक लौंडी बदहवास दौड़ी हुई आई और बोली–
लौंडी–कालिंदी के खास कमरे में मालती की लाश पड़ी हुई है और कालिंदी का कही पता नहीं है।
कुसुम–है! मालती की लाश पड़ी हुई है!! उसे किसने मारा?
लौंडी–न मालूम किसने मारा! कलेजे में जख्म लगा हुआ है, खून से तर-बतर हो रही है!!
कुसुम–और कालिंदी का पता नहीं!!
लौंडी–तमाम घर ढूंढ़ डाला, लेकिन...
रनबीर–शायद कोई ऐसा दुश्मन आ पहुंचा जो मालती को मार डालने के बाद कालिंदी को ले भागा।
कुसुम–इधर कई दिनों से कालिंदी उदास और किसी सोच में मालूम पड़ती थी, इससे मुझे उसी पर कुछ शक पड़ता है।
रनबीर–अगर ऐसा है तो मैं भी कालिंदी ही पर शुबहा करता हूं।
कुसुम–हाय बेचारी मालती!!
कुसुम कुमारी जी-जान से मालती को प्यार करती थी, उसके मरने का उसे बड़ा ही गम हुआ, साथ ही इस तरद्दुद ने भी उसका दिमाग परेशान कर दिया कि कालिंदी कहां गायब हो गई और उसके सोच में मां-बाप की क्या दशा होगी।
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