उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
|
1 पाठकों को प्रिय 266 पाठक हैं |
रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रनबीरसिंह और बीरसेन के बदन पर भी छोटे-छोटे कई जख्म लगे, मगर इनकी बेतरह काटने वाली तलवारों ने थोड़ी ही देर में दुश्मनों को परेशान कर दिया और विश्वास दिला दिया कि जो थोड़ी देर भी वहां ठहरेगा बेशक अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। भागने की फिक्र में कोई तो छत के नीचे गिरकर हाथ-पैर तोड़ बैठा, कोई सीढ़ियों ही पर लुढ़ककर हुआ नीचे पहुंचकर बदहवास हो गया, और कोई अपनी जान सलामत लेकर भाग निकला।
लड़ते-ही-लड़ते रनबीरसिंह ने यह भी देख लिया कि कई दुश्मन उस तरफ जा पहुंचे हैं जिधर बेचारी कुसुम कुमारी खड़ी रनबीरसिंह की बहादुरी देख रही थी। दुश्मनों पर फतह पाए हुए रनबीरसिंह इसलिए वहां गए जिसमें बेचारी कुसुम को किसी तरह की तकलीफ न पहुंचने पावे, मगर रनबीरसिंह को कुसुम कुमारी न मिली और ये घबरा कर चारों तरफ ढूंढ़ने लगे। तसवीर वाले कमरे के दरवाजे पर कुसुम कुमारी की ओढ़नी मिली जिसे इन्होंने उठा लिया, हाथ में लेते ही मालूम हो गया कि यह खून से तर है।
रनबीरसिंह समझ गए कि दुश्मनों के हाथ से बेचारी कुसुम की जख्मी हुई। थोड़ी ही देर में लोगों के यह कहने से कि–तमाम महल में ढूंढ़ डाला मगर महारानी का पता न लगा रनबीरसिंह को विश्वास हो गया कि यह दुश्मनों के कब्जे में आ गई। इस गम में उनका दिमाग चक्कर खाने लगा और वे बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़े।
बीरसेन ने बेहोश रनबीरसिंह को उसी तरह छोड़ दिया, चारों तरफ कुसुम की खोज में दौड़ती बदहोश और रोती लौंडियों की तरफ कुछ भी ध्यान न दिया, और तुरन्त महल से बाहर निकल एक तरफ को रवाना हो गए।
|