उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
पांच-सात लौंडियां बदहवास रोती और चिल्लाती हुई वहां पहुंची जहां से चारों इस बात का पता लगाने के लिए खड़े थे कि शोरगुल की आवाज कहां से और क्यों आ रही है। ये लौंडियां खून से तर-बतर हो रही थीं, इनके पैर खौफ से कांप रहे थे और इनकी आवाज घबराहट से लड़खड़ा रही थी।
दीवान–यह कैसा हंगामा मचा हुआ है? तुम लोगों की ऐसी दशा क्यों हो रही है?
एक लौंडी–हमारे बहुत से दुश्मन हाथ में नंगी तलवारें लिए महल में आ पहुंचे है, न मालूम कहां से और किस राह से आए हैं। यह कह-कहकर लौंडी गुलामों को मार रहे हैं कि यही कुसुम है, यही रनबीर है, कई लौंडी और गुलामों की लाशें इधर-उधर पड़ी तड़प रही है और हम लोगों की यह दशा हो गई है!
यह सुनकर दीवान साहब सोच में पड़ गए, रनबीरसिंह को बहादुरी का जोश चढ़ आया, बीरसेन का बदन गुस्से के मारे कांपने लगा, और बेचारी कुसुम कुमारी रनबीरसिंह को खाली हाथ देख अफसोस करने लगी।
इस समय केवल बीरसेन की कमर से एक तलवार लटक रही थी जिसे रनबीरसिंह ने फुर्ती से निकाल लिया और उस तरफ बढ़े जिधर से घबड़ाई हुई लौंडियां आई थीं। रनबीरसिंह को इस तरह जाते देख बीरसेन और दीवान साहब खाली ही हाथ उनके पीछे दौड़े, मगर दूर जाने की नौबत न आई क्योंकि दुश्मनों का झुंड धूम और फसाद मचाता हुआ उसी जगह आ पहुंचा, जहां ये लोग थे। उन लोगों ने चारों तरफ से इनको घेर लिया। बेचारे खाली हाथ दीवान साहब एक ही हाथ तलवार का खाकर जमीन पर गिर पड़े। बीरसेन ने अपने पर वार करते हुए एक दुश्मन के हाथ से तलवार छीन ली और तीन-चार दुष्टों को बात की बात में यमलोक पहुंचा दिया। रनबीरसिंह की तलवार तो इस समय कालरूप हो रही थी, जिसकी गर्दन के साथ छू जाती उसका सर काटकर फेंक देती थी, जिसके मोढ़े पर बैठ जाती उसको साफ जनेवा काटकर दो टुकड़े कर देती थी, जिसकी खोपड़ी पर पहुंच जाती उसकी कमर तक ककड़ी की तरह काटती हुई उतर जाती थी।
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