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धर्म एवं दर्शन >> क्या धर्म क्या अधर्म

क्या धर्म क्या अधर्म

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9704
आईएसबीएन :9781613012796

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धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है।


लघुता से महानता की ओर, अपूर्णता से पूर्णता की ओर जीवन की यात्रा का प्रवाह बह रहा है। इस चक्र को चालू रखने के लिए शारीरिक और मानसिक स्वाभाविक इच्छा आकांक्षाऐं अपनी भूख प्रकट करती रहती हैं। (1) आरोग्य, (2) ज्ञान वृद्धि, (3) सौन्दर्य, (4) धन, (5) कीर्ति, (6) संगठन, (7 ) विवाह, (8) आत्म-गौरव - यह आठ वस्तुऐं हर मनुष्य चाहता है। इनकी शाखा-उपशाखाऐं अनेक हैं पर मूलत: यह आठ वृत्तियाँ ही प्रघान होती हैं। सत् चित् आनन्द की तीन इच्छाऐं ससार के पंच भौतिक पदार्थों से टकराकर उपरोक्त आठ टुकड़ों में बँट जाती हैं। आठों पहर इन्हीं आठ कामों की इच्छा अभिलाषाऐं मनुष्य को सताती हैं और वह किसी न किसी रूप में तृप्त करने के लिए उद्योग किया करता है। साधु-चोर, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, स्त्री-पुरुष सब कोई अपनी आठ मानसिक वृत्तियों को बुझाने के नाना प्रकार के कर्मों का ताना-बाना बुनते रहते हैं। तीन सूक्ष्म आकांक्षाऐं पंच तत्वों के आठ पदार्थों के साथ आठ प्रकार से प्रकट होती हुई हर कोई देख सकता है। पापी और पुण्यात्मा इन कार्यों के अतिरिक्त और कोई कार्यक्रम अपने सामने नहीं रखते।

मध्यम वर्ग से इन वृत्तियों को तृप्त करने वाला इस संसार में धर्मात्मा कहा जाता है और जो अति या अभाव की नीति ग्रहण करता है, उसकी शुमार पापियों में की जाती है। जो शरीर को निरोग रखने के लिए प्रातःकाल उठता है, स्नान करता है, दन्त धावन, व्यायाम करता है, मस्तिष्क को शीतल रखने के लिए चन्दन लगाता है, छना हुआ जल पीता है, रोगनाशक तुलसी-पत्रों का सेवन करता है, गन्दे आदमियों का छुआ नहीं खाता, व्रत-उपवास रखता है, वह धर्मात्मा है। निस्संदेह स्वास्थ्य को ठीक रखने वाला पुण्यात्मा ही कहा जा सकता है क्योंकि मनुष्य के अन्तःकरण में घुसकर बैठी हुई आरोग्य भावना का वह मध्यम मार्ग से पोषण करता है जो अभाव या अति का व्यवहार करेगा वही पापी कहलायेगा। सूर्योदय तक सोने वाला, स्नान में लापरवाही करने वाला, अन्न-जल की शुद्धता पर ध्यान न देने वाला, उपवास न करके पेट को खराब रखने वाला पापी है क्योकि उसमें मध्यम मार्ग का अभाव है। जो व्यक्ति आरोग्य की आतुरता में अन्धा हो रहा है, भक्ष-अभक्ष का विचार न करके जो चाहे सो खाता है या बहुत व्रत रखता है, अन्य सब काम छोड़कर केवल दिन-रात आरोग्य को ही पकड़े बैठा है, वह भी पापी है क्योंकि उसने मध्यम मार्ग को छोड़कर अति का आश्रय लिया है।

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