उपन्यास >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
एक और वर्ष-गाँठ - आज
हम तुलियन पहुँचे थे, और मैंने गाया था 'लव मेड ए जिप्सी आउट आफ़ मी',
और... इस प्रेत कैलेण्डर की वर्ष-गाँठ गिनते-गिनते मैं भी प्रेतिनी हो गयी
शायद - जी चाहता है कि ठठा कर हँसूँ - कैसी जिप्सी बनाया प्रेम ने। पिछले
वर्ष आज उत्तर मेरु पर थी, आज दक्षिण मेरु पर हूँ, उस दिन दुनिया की छत पर
थी, आज - इससे गहरा और कौन-सा पाताल होगा जिसमें मैं आज हूँ! और आगे सागर
हहराता है आदिहीन और अन्तहीन; और सहसा स्वयं अपनी अन्तहीनता एक भयावना
स्वप्न बनकर मेरे सामने आ जाती है - भुवन, यह अन्तहीन जिप्सी प्रेतिनी
जाएगी कहाँ!
तुमने एक बार मुझे लारेंस की कविता भेजी थी। लो, आज
मैं तुम्हें एक का अंश भेजती हूँ। कोई सिर-पैर इसका नहीं है, फिर भी कुछ
प्रासंगिकता मानो उसमें है।
समथिंग
इन मी रिमेम्बर्स एण्ड विल नाट फ़ार्गेट; द स्ट्रीम आफ़ माइ लाइफ़ इन द
डार्कनेस डेथवार्ड सेट। एण्ड समथिंग इन मी हैज़ फ़ार्गाटिन , हैज़ सीज्ड
टु केयर , डिज़ायर कम्स अप एण्ड कटेंटमेन्ट इज़ डिबानेयर। आइ हू एम वोर्न
एण्ड केयरफ़ुल हाउ मच डू आइ केयर ? हाउ इज़ इट आइ ग्रिन देन , एण्ड चक्ल्
ओवर डिस्पेयर ? ग्रीफ़ , ग्रीफ़ आइ सपोज़ एण्ड सफ़ीशेंट ग्रीफ़ मेक्स अस
फ्री टु बी फ़ेथलेस एण्ड फ़ेथफुल टुगेदर एज वी आल हैव टु बी।
(कुछ
मुझमें है जो स्मरण करता है और भूल नहीं सकता ; अन्धकार में मृत्यु की ओर
उन्मुख मेरी जीवन धारा। और कुछ मुझमें भूल गया है और परवाह नहीं करता ;
वासना फिर जागती है और सन्तोष मौज़ में आता है। मैं जो क्लान्त और
चिन्ता-ग्रस्त हूँ-मुझे कितनी परवाह है ? कैसे मैं हँसता हूँ और निराशा पर
खिलखिलाता हूँ? दुःख , दुःख-मेरी समझ में पर्याप्त दुःख ही हमें स्वतन्त्र
करता है एक साथ ही वफादार और बेवफा होने के लिए, जैसा कि हम सभी को होना
पड़ता है। - डी. एच. लारेंस)
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