उपन्यास >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
पर
यह सब मैं क्या लिख रहा हूँ? कहना यह चाहता हूँ कि इस खबर ने मुझे झकझोर
दिया है। यहाँ काम भी अब आगे नहीं हो सकता-बड़ी तेज़ी से फ़ौजी संगठन हो
रहा है और और सब काम रुक गया है। हम तुरत यहाँ से जा रहे हैं-आजकल में
शायद वायुयान से सब सामान समेत सिंगापुर ले जायें जाएँगे, वहाँ से आगे
जैसा हो। मैं भारतवर्ष लौट रहा हूँ। क्रिसमस से पहले नहीं तो मासान्त तक
अवश्य पहुँच जाऊँगा। यह नहीं कह सकता अभी कि कलकत्ते पहुँचूँगा, या
कोलम्बो, या कहाँ-जैसा प्रबन्ध हो जाए। पक्का पता लगते ही तार से तुम्हें
सूचित करुँगा। मेरे मन में अनेक विचार उठ रहे हैं-अनेक प्रकार के इरादे-पर
अभी कुछ स्पष्ट नहीं है, उस बारे में अभी नहीं लिखूँगा; पर सोचता हूँ,
तुमसे मिलकर बात-चीत करूँ, तो विचार भी कुछ स्पष्ट हों, और आगे का मार्ग
भी कुछ दीखे। गौरा, अगर मैं सीधा तुम्हारे पास न आ सका, और तुम्हें मैंने
मिलने के लिए बुलाया, तो आ सकोगी न-आओगी न? या कि रूठ जाओगी? तुमने एक
पत्र में लिखा था, “आप बुलावें, उतना मान मेरा नहीं है”,-तुम क्या जानो कि
कितना है! पर वह जो हो, उसकी बात मिलने पर; अभी इतना ही कि शायद बुलाऊँ
ही-तो आना, क्षमामयी गौरा!
जल्दी में-सहसा बहुत-सा काम करने को हो गया है!
भुवन
गौरा के नाम भुवन का केबल :
सुरक्षित हूँ लौट रहा हूँ सबको सूचित कर दो निश्चित स्थान तारीख अनन्तर सूचित करूँगा।
भुवन
गौरा के नाम भुवन का केबल :
सिंगापुर सकुशल पहुँचा। आशा है कल कलकत्ता प्रस्थान पहुँचने की अनुमानित तिथि 23 दिसम्बर सको तो मिलो पता मारफत कुक़ या डच् एयरलाइन।
भुवन
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