लोगों की राय

उपन्यास >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

390 पाठक हैं

व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


गौरा, कोई किसी के जीवन का निर्देशन करे, यह मैं सदा से ग़लत मानता आया हूँ तुम जानती हो। दिशा-निर्देशन भीतर का आलोक ही कर सकता है; वही स्वाधीन नैतिक जीवन है, बाकी सब गुलामी है। दूसरे यही कर सकते हैं कि उस आलोक को अधिक द्युतिमान बनाने में भरसक सहायता दें। वही मैंने जब-तब करना चाहा है, और उस प्रयत्न में स्वयं भी आलोक पा सका हूँ, यह मैं कह ही चुका। तुम्हारे भीतर स्वयं तीव्र संवेदना के साथ मानो एक बोध भी रहा है जो नीति का मूल है; तुम्हें मैं क्या निर्देश देता?

अभी किस प्रश्न को लेकर तुम चिन्तित हो, यह शायद मैं समझ सका हूँ। पर उस प्रश्न में सहसा इतनी चिन्त्य तात्कालिकता क्यों आ गयी कि तुमने मुझे बुला भेजा, यह तुम्हारी ओर से किसी सूचना की अनुपस्थिति में कैसे जानूँ? यह प्रश्न आगे-पीछे उठता ही; मैं समझता हूँ कि परीक्षा-फल के साथ-साथ ही भविष्य-निर्णय का प्रश्न तुम्हारे माता-पिता के सामने उठा होगा। यह भी हो सकता है कि उन्होंने पहले से कुछ सोच रखा हो-चाहे कह भी रखा हो-और अब, जब उनकी समझ में तुम्हारी शिक्षा पूरी हो गयी और वय भी हो गयी, तब तुम्हें पूछा या बताया हो। उन पर मेरी श्रद्धा है और मैं समझता हूँ कि तुम्हारा अहित उनसे नहीं होगा; इतना ही नहीं, मैं यह भी समझता हूँ कि तुम्हारे हिताहित के विषय में तुम्हारी धारणा को वे अमान्य नहीं करेंगे-उससे क्लेश होगा तब भी नहीं। एक बार तुम्हारे पिता ने मुझसे कहा था : “सन्तान को पढ़ा-लिखा कर फिर अपनी इच्छा पर चलाना चाहने का मतलब है स्वयं अपनी दी हुई शिक्षा-दीक्षा को अमान्य करना, अपने को अमान्य करना; क्योंकि बीस बरस में माँ-बाप सन्तान को स्वतन्त्र विचार करना भी न सिखा सके तो उन्होंने क्या सिखाया?” जो व्यक्ति ऐसी बात मान सकता है, उसके विचार-परिपाटी के बुनियादी मान ठीक है, और मुझे विश्वास है कि वह चाहे वचन-बद्ध भी हो चुके हों-जो मेरी समझ में न हुए होंगे-उनसे साफ़-साफ़ बात करना शुभ परिणाम देगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book