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जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

रोजाना काम पड़ते रहने से और सम्बन्ध होने से यदि थोड़ी सी चेष्टाम की जाए और ग्रामवासियों को थोड़ा सा उपदेश देकर उनकी दशा सुधारने का यत्न  किया जाए तो बड़ी जल्दी काम बने। अल्प समय में ही वे सच्चे स्वदेश भक्ति खद्दरधारी बन जाएं। यदि उनमें एक दो शिक्षित हों तो उत्साहित करके उनके पास एक समाचार पत्र मंगाने का प्रबन्ध कर दिया जाए। देश की दशा का भी उन्हें कुछ ज्ञान होता रहे। इसी तरह सरल-सरल पुस्तकों की कथाएं सुनाकर उनमें से कुप्रथाओं को भी छुड़ाया जा सकता है। कभी कभी स्वयं रामायण या भागवत की कथा भी सुनाया करें। यदि नियमित रूप से भागवत की कथा कहें तो पर्याप्तु धन भी चढ़ावे में आ सकता है, जिससे एक पुस्तयकालय स्थापित कर दें। कथा कहने के अवसर पर बीच बीच में चाहे कितनी राजनीति का समावेश कर जाये, कोई खुफिया पुलिस का रिपोर्टर नहीं बैठा जो रिपोर्ट करे। वैसे यदि कोई खद्दरधारी ग्राम में उपदेश करना चाहे तो तुरन्त ही जमींदार पुलिस में खबर कर दे और यदि कस्वे के वैद्य, लड़के पढ़ाने वाले अथवा कथा कहने वाले पण्डित कोई बात कहें तो सब चुपचाप सुनकर उस पर अमल करने की कोशिश करते हैं और उन्हें कोई पूछता भी नहीं।

इसी प्रकार अनेक सुविधाएं मिल सकती हैं जिनके सहारे ग्रामीणों की सामाजिक दशा सुधारी जा सकती है। रात्रि-पाठशालाएं खोलकर निर्धन तथा अछूत जातियों के बालकों को शिक्षा दे सकते हैं। श्रमजीवी संघ स्थापित करने में शहरी जीवन तो व्यतीत हो सकता है, किन्तु इसके लिए उनके साथ अधिक समय खर्च करना पड़ेगा। जिस समय वे अपने अपने काम से छुट्टी पाकर आराम करते हैं, उस समय उनके साथ वार्तालाप करके मनोहर उपदेशों द्वारा उनको उनकी दशा का दिग्दर्शन कराने का अवसर मिल सकता है। इन लोगों के पास वक्तद बहुत कम होता है। इसलिए बेहतर यही होगा कि चित्ताकर्षण साधनों द्वारा किसी उपदेश करने की रीति से, जैसे लालटेन द्वारा तस्वीरें दिखाकर या किसी दूसरे उपाय से उनको एक स्थान पर एकत्रित किया जा सके, तथा रात्रि पाठशालाएं खोलकर उन्हें तथा उनके बच्चों को शिक्षा देने का भी प्रबन्ध किया जाए। जितने युवक उच्च शिक्षा प्राप्तद करके व्यर्थ में धन व्यय करने की इच्छा रखते हैं, उनके लिए उचित है कि वे अधिक से अधिक अंग्रेजी के दसवें दर्जे तक की योग्यता प्राप्तव कर किसी कला कौशल को सीखने का प्रयत्न् करें और उस कला कौशल द्वारा ही अपना जीवन निर्वाह करें।

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