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उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


इस बीच में रामपुर हाट से एक छोकरा-सा पंजाबी डॉक्टर आ पहुँचा था। मुझे सतीश का बाल्य-बन्धु जानकर मानो वह जी-सा गया। रोगी के बारे में बोला, “केस सीरियस नहीं है, जान का कोई खतरा नहीं।” फिर कहने लगा, “मेरी ट्राली तैयार है, अभी रवाना न होने से हेड-क्वार्टर्स से पहुँचने में बहुत ज्यादा रात हो जायेगी- तकलीफ का ठिकाना न रहेगा।” मेरा क्या होगा, यह उसके सोचने का विषय नहीं। कब क्या करना होगा, इस बात का भी उपदेश दिया; और अपनी ठेलागाड़ी पर रवाना होते समय बैग में से दो-तीन डिब्बी और शीशियाँ मेरे हाथ में देते हुए उसने कहा, “हैज़ा छूत की बीमारी है। उस तलैया का पानी काम में लाने के लिए मना कर दीजिएगा।” कहते-कहते उसने सामने के एक मिट्टी निकाले हुए गढ़े की और इशारा किया, और फिर कहा, “और अगर आपको खबर मिले कि कुलियों में से किसी को हैज़ा हो गया है- हो भी सकता है, तो इन दवाओं को काम में लाइएगा।”

इतना कहकर रोग की किस अवस्था में कौन-सी दवा देनी होगी, यह सब भी उसने समझा दिया।

आदमी बुरा नहीं है, और दया-माया भी है। मुझे बार-बार समझाकर सावधान कर गया है कि अपने बाल्य-बन्धु की तबीयत का हाल कल उसे जरूर मिल जाय, और कुलियों पर भी निगाह रखने में भूल न हो।

यह अच्छा हुआ। राजलक्ष्मी गयी वक्रेश्वर की यात्रा करने, और नाराज होकर मैं निकला बाहर फिरने। रास्ते में एक आदमी से भेंट हो गयी। बचपन का परिचय था उससे, इसलिए बाल्य-बन्धु तो है ही। हाँ, इतना जरूर है कि पन्द्रह-सोलह वर्ष से उससे भेंट नहीं हुई थी, इसलिए सहसा उसे पहिचान न सका था। मगर इन दो ही चार दिनों के अन्दर यह कैसी घोर घनिष्ठता हो गयी कि उसके हैजे के इलाज का भार, तीमारदारी की जिम्मेवारी, और साथ ही उसके सौ-डेढ़ सौ मिट्टी खोदने वाले कुलियों की रखवारी का भार- वह तमाम आफत मुझ पर ही आ टूटी! बच रहा सिर्फ उसका सोले का हैट और टट्टू घोड़ा- और शायद वह मजदूर की लड़की भी। उसकी मानभूमि‍ की अनिर्वचनीय बाउरी भाषा का अधिकांश मुझे खटकने लगा। सिर्फ एक बात मुझे नहीं खटकी, वह यह कि इन दस ही पन्द्रह मिनटों के दर्म्यान, मुझे पाकर उसे बहुत कुछ तसल्ली हो गयी। जाऊँ, अब इतनी कमी क्यों रक्खूँ, जाकर घोड़े को एक बार देख आऊँ।

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