लोगों की राय

उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


फिर नसैनी के सहारे चढ़ना पड़ा, देखा कि वह स्त्री है। उमर पचीस-तीस से ज्यादा न होगी, दो बच्चे उसके पास पड़े सो रहे हैं। पति नहीं है- वह पिछली साल अरकाटी के फेर में पड़कर, दूसरी किसी अपेक्षाकृत कम उमर की औरत के साथ, आसाम के चाय के बगीचे में काम करने चला गया है।

इस गाड़ी में और भी पाँच-छै स्त्री-पुरुष मौजूद थे, उन्होंने उसके पाषाण-हृदय पति की निन्दा करने के सिवा रोगी की कोई भी सहायता नहीं की। पंजाबी डॉक्टर के उपदेशानुसार मैंने दोनों रोगियों को दवा दे दी और बच्चों को स्थानान्तरित करने की भी कोशिश की, परन्तु किसी को भी मैं उनका भार सँभालने के लिए राजी न कर सका।

सबेरे तक और एक लड़के को हैजा शुरू हो गया, उधर सतीश भारद्वाज की अवस्था भी उत्तरोत्तर खराब हो रही थी। बहुत खुशामद-बरामद के बाद एक आदमी को साँइथिया स्टेशन पर पंजाबी डॉक्टर को खबर देने के लिए भेजा। उसने शाम तक आकर खबर दी कि वे कहीं रोगी देखने चले गये हैं।

मेरे लिए सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि साथ में रुपये नहीं थे। और खुद कल से उपवास ही कर रहा था। सोना नहीं, आराम नहीं- खैर, यह नहीं तो न सही, पर पानी वगैर पीये कैसे जीऊँ? सामने की तलैया का पानी पीने के लिए सबको मना कर दिया था, पर किसी ने बात नहीं मानी। औरतों ने मन्द मुसकान के साथ बताया कि इसके सिवा पानी और है कहाँ डॉक्टर साहब? कुछ दूरी पर गाँव में पानी था, पर जाय कौन? ये लोग मर सकते हैं, पर बिना पैसे के यह व्यर्थ का काम करने को राजी नहीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book