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उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


इस अन्तिम बात से चौंककर मैंने उनके मुँह की ओर देखा। खूब अच्छी तरह गौर के साथ देखने पर भी उनको मैंने अल्पशिक्षित साधारण ग्रामीण भले आदमी के सिवा और कुछ नहीं पाया- फिर भी उनकी बात मानो अकस्मात् अपने को अतिक्रमण करके बहुत दूर पहुँच गयी।

उनकी सभी बातों को मैं अभ्रान्त समझकर अस्वीकार कर सका हूँ सो बात नहीं, परन्तु अंगीकार करनें में भी मुझे वेदना का अनुभव होने लगा। न जाने कैसा संशय होने लगा कि ये सब बातें उनकी अपनी नहीं हैं, मानो यह और किसी न दीखने वाले की जबान बन्दी है।

बहुत ही संकोच के साथ मैंने पूछा, “और कुछ खयाल न करें...”

“नहीं-नहीं, खयाल किस बात का? कहिए?”

मैंने पूछा, “अच्छा, यह सब क्या आपकी अपनी अभिज्ञता है, अपने निजी चिन्तन का फल है?”

भले आदमी नाराज हो गये। बोले, “क्यों ये क्या झूठी बातें हैं? इसमें एक अक्षर भी झूठा नहीं- समझ लीजिएगा।”

“नहीं नहीं, झूठी तो मैं बताता नहीं, पर...”

“फिर 'पर' कैसी? हमारे स्वामीजी कभी झूठ नहीं बोलते। उनके समान ज्ञानी और है कोई?”

मैंने पूछा, “स्वामीजी कौन?”

उनके साथी ने इसका जवाब दिया। बोले, “स्वामी वज्रानन्द। उमर कम है तो क्या अगाध पण्डित हैं, अगाध...”

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