लोगों की राय

उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


प्यारी ने मुँह के ऊपर झुक पड़कर सिर पर के जलबिन्दु आँचल से पोंछते हुए कहा, “मुझे क्या तुम चीन्ह सकते हो? अब कैसे हो? कल...”

“अच्छा हूँ। कब आयीं? यह क्या आरा है?”

“हाँ आरा ही है। कल हम लोग घर चलेंगे।”

“कहाँ?”

“पटने। सिवाय अपने घर ले जाने के, अभी क्या और कहीं, मैं तुम्हें छोड़ जा सकती हँ?”

“यह लड़का कौन है, राजलक्ष्मी?”

“मेरी सौत का लड़का है। किन्तु, बंकू मेरे पेट का लड़का-सा ही है। मेरे पास रहकर ही पटना कॉलेज में पढ़ता है। आज अब और बात मत करो। सो जाओ - कल सब कहूँगी।” इतना कहकर उसने मेरे मुँह पर हथेली रखकर मेरा मुँह बन्द कर दिया।

मैं हाथ बढ़ाकर राजलक्ष्मी के दाहिने हाथ को मुट्टी में लेकर करवट बदल कर सो रहा।

0 0 0

जिस ज्वर से पीड़ित होकर मैं बेहोश हो शय्यागत हो गया था वह शीतला का नहीं था, कुछ और ही था। डॉक्टरी शास्त्र में निश्चय से ही उसका कोई बड़ा भारी कठिन नाम था, परन्तु मुझे वह याद नहीं रहा। खबर पाकर प्यारी, अपने लड़के, दो नौकर और दासी को लेकर, आ उपस्थित हुई। उसी दिन एक ठहरने का स्थान किराये पर लेकर मुझे उसमें स्थानान्तरित कर दिया और शहर के भले-बुरे सब चिकित्सकों को बुलाकर वहाँ इकट्ठा कर लिया। अच्छा ही किया। नहीं तो, और कोई नुकसान चाहे भले ही न होता, परन्तु 'भारतवर्ष' के¹ पाठक-पाठिकाओं के धैर्य की महिमा तो संसार में अविदित ही रह जाती! (1 श्रीकान्त का यह भ्रमण-वृत्तान्त पहले बंगाल के प्रसिद्ध मासिक पत्र 'भारतवर्ष' में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ था। )

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book