नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 2 प्रेमचन्द की कहानियाँ 2प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग
मैंने जब नाटक के कामयाबी की ऐसी शानदार तसवीर खींची, तो हेम बाबू के चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कान नजर आयी। वह तकिए के सहारे लेटे हुए मेरी बातों को बड़ी गौर से सुन रहे थे। शायद ख्याल में उन्हें पहली रात की आमदनी के नोट और अशर्फियों के ढेर-के-ढेर नज़र आ रहे थे। बेचारे हँसी को रोकते थे, मगर वह रोके न रुकती थी। जब मैं खामोश हुआ तो वह खुशी से बोले, ''वाह! बाबू साहव वाह! क्या तरक़ीब सोची है। बस अब इसमें देर न कीजिए। आपको भी परमात्मा ने क्या सूक्ष्मदर्शी अक्ल दी है। मुझे तो ख्वाब में भी यह न सूझता।''
मैंने पूछा, ''तो आप चलने को मुस्तैद हैं?''
हेम बाबू आश्चर्य से बोले, ''मैं! वाह, आप भी क्या कहते हैं! भला मैं कैसे चल सकता हूँ। देखिए, मुझे एक खास बीमारी है। कभी-कभी उसका दौर हो जाता है। आजकल तो उसने बहुत दिक कर रखा है। मुझे कहाँ ले चलिएगा। आप अकेले ही जाइए न!''
मैंने कहा, ''अकेले नहीं हो सकता। सारा खेल बिगड़ जाएगा। हम दोनों को साथ जाना चाहिए।''
हेम बाबू थोड़ी देर कुछ सोचकर बोले, ''लेकिन इस काम में कोई, आफ़त आने का डर तो नहीं? मान लो, किसी ने देख लिया तो फिर? और यह तो बताइए, चलिएगा कहाँ?''
मैंने जवाब दिया, ''अभी इसका फ़ैसला नहीं कर सकता। रात ही को तो यह तरकीब सूझी है और इस वक्त आप से सलाह लेने चला आया। चलना ऐसी जगह चाहिए जहाँ कलकत्ता के बहुत थोड़े आदमी हों। छुपकर रहने के लिए जगह की कमी नहीं और न बहुत दूर ही जाना पड़ेगा। अभी उस दिन हरेंद्र और भुवन बैंक पर हाथ साफ़ करके गायब हुए और उसका पता नहीं। मुझे तो यकीन है कि वे करीब ही के किसी गाँव में छिपे हुए हैं और इधर पुलिस सारे शहर की खाक छान रही है। हाँ, आपने रामनगर का नाम कभी सुना है?''
''नहीं, क्यों?''
''वह मुकाम जाड़े में ऐसा वीरान हो जाता है, जैसे अरब का रेगिस्तान। वहीं नाम बदलकर रहने से किसी को हमारी खबर न होगी। रामनगर के पास ही एक नदी है। शाम-सबेरे आप इस नदी के किनारे टहलिएगा। इससे आपकी सेहत को भी नफ़ा होगा।''
''मैं बिलकुल तंदुरुस्त हूँ। देहात जाकर सेहत हासिल करने की जरूरत मुझे नहीं हैं, और फिर महीने-पंद्रह दिन की बात होती तो खैर। तीन-तीन महीने! ग़ज़ब रे गजब!''
बहुत बहस-ओ-तकरार के बाद हेम बाबू ने सोचकर जवाब देने का वायदा किया। मतलब यह था कि बीवी से सलाह ले लूँ।
भविष्य के सब्ज बाग दिखाकर आखिर मैंने हेम बाबू को बड़ी मुश्किल अपने साथ चलने पर राजी किया।
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