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प्रेमचन्द की कहानियाँ 2

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9763
आईएसबीएन :9781613015001

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग


देवदत्त ऐसा निराश हो रहा था कि गिरिजा को चैतन्य देखकर भी उसे आनंद नहीं हुआ। बोला- ‘‘हाँ, आज दिवाली है।’’ गिरिजा ने आँसू-भरी दृष्टि से इधर-उधर देख कर कहा- ‘‘हमारे घर में क्या दिए न जलेंगे?’’

देवदत्त फूट-फूटकर रोने लगा। गिरिजा ने फिर उसी स्वर में कहा- ‘‘देखो आज बरस-बरस के दिन घर अँधेरा रह गया। मुझे उठा दो मैं भी अपने घर में दीये जलाऊँगी।’’

ये बातें देवदत्त के हृदय में चुभी थीं। मनुष्य की अंतिम घड़ी लालसाओं और भावनाओं में व्यतीत होती है।

इस नगर में लाला शंकरदास अच्छे प्रसिद्ध वैद्य थे। वे अपने प्राण-संजीवन औषधालय में दवाओं के स्थान पर छापने का प्रेस रक्खे हुए थे। दवाइयाँ कम बनती थीं, किंतु इश्तहार अधिक प्रकाशित होते थे।

वे कहा करते थे कि बीमारी केवल एक रईसों का ढकोसला है और पोलिटकल एकानोमी (अर्थशास्त्र) के मतानुसार इस विलास पदार्थ से जितना अधिक संभव हो टैक्स लेना चाहिए। यदि कोई निर्धन है, तो हो। कोई मरता है, तो मरे। उसे क्या अधिकार है कि वह बीमार पड़े और मुफ्त में दवा करावे। भारतवर्ष की यह दशा मुफ्त दवा कराने से हुई है। इसने मनुष्यों को असावधान और बलहीन बना दिया है। देवदत्त महीने-भर से नित्य उनके निकट दवा लेने आता था, परंतु वैद्यजी कभी उसकी ओर इतना ध्यान नहीं देते थे कि वह अपनी शोचनीय दशा प्रकट कर सके। वैद्यजी के हृदय के कोमल भाग तक पहुँचने के लिए देवदत्त ने बहुत कुछ हाथ-पैर चलाए। वह आँखों में आँसू-भरे आता, किंतु वैद्यजी का हृदय ठोस था, उसमें कोमल भाग था ही नहीं।

वही अमावस्या की डरावनी रात थी। गगनमंडल में तारे आधी रात के बीतने पर और भी अधिक प्रकाशित हो रहे थे, मानो श्रीनगर की बुझी हुई दीपावली पर कटाक्षयुक्त आनंद के साथ मुस्करा रहे थे। देवदत्त एक बेचैनी की दशा में गिरिजा के सिरहाने से उठे और वैद्यजी के मकान की ओर चले। वे जानते थे कि लालाजी बिना फीस लिए कदापि नहीं आएँगे, किंतु हताश होने पर भी आशा पीछा नहीं छोड़ती। देवदत्त कदम आगे बढ़ाते चले जाते थे।

हकीम जी उस समय अपने रामबाण ‘बिंदु’ का विज्ञापन लिखने में व्यस्त थे। उस विज्ञापन की भावप्रद भाषा तथा आकर्षण शक्ति को देखकर कह नहीं सकते कि वे वैद्यशिरोमणि थे या सुलेखक विद्यावारिधि।

पाठक, आप उनके उर्दू विज्ञापन का साक्षात् दर्शन कर लें।

‘‘नाज़रीन! आप जानते हैं कि मैं कौन हूँ? आपका जर्द चेहरा, आपका तने लागिर, आपका ज़रा-सी मेहनत में बेदम हो जाना, आपका लज्जात दुनियाँ से महरूम रहना, आपकी खाना तारीकी, यह सब इस सवाल का नफ़ी में जवाब देते हैं।

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