नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 2 प्रेमचन्द की कहानियाँ 2प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग
रग्घू मुस्करा कर बोला– तुम अभी से कैसे बूढ़ी हो गयी? गाँव में, कौन तुम्हारे बराबर है?
रग्घू की सरल आलोचना ने पन्ना को लज्जित कर दिया। उसके रूखे मुरझाये मुख पर प्रसन्नता की लाली दौड़ गयी।
पाँच साल गुजर गये। रग्घू का सा मेहनती, ईमानदार, बात का धनी दूसरा किसान गाँव में न था। पन्ना की इच्छा के बिना कोई काम न करता। उसकी उम्र अब २३ साल की हो गयी थी। पन्ना बार-बार कहती, भइया बहू को बिदा करा लाओ। कब तक नैहर में पड़ी रहेगी। सब लोग मुझी को बदनाम करते हैं कि यही बहू को नहीं आने देती; मगर रग्घू टाल देता था। कहता कि अभी जल्दी क्या है। उसे अपनी स्त्री के रंग-ढंग का कुछ परिचय दूसरों से मिल चुका था। ऐसी औरत को घर में लाकर वह अपनी शांति में बाधा नहीं डालना चाहता था।
आखिर एक दिन पन्ना ने जिद करके कहा– तो तुम न लाओगे?
‘कह दिया कि अभी कोई जल्दी नहीं है।’
‘तुम्हारे लिए जल्दी न होगी, मेरे लिए जल्दी है। मैं आज आदमी भेजती हूँ।’
‘पछताओगी काकी, उसका मिजाज अच्छा नहीं है।’
‘तुम्हारी बला से। जब मैं उससे बोलूँगी ही नहीं, तो क्या हवा से लड़ेगी। रोटियाँ तो बना लेगी। मुझसे भीतर-बाहर का सारा काम नहीं होता, मैं आज बुलाये लेती हूँ?’
‘बुलाना चाहती हो, बुला लो; मगर फिर यह न कहना कि यह मेहरिया को ठीक नहीं करता, उसका गुलाम हो गया।’
‘न कहूँगी, जाकर दो साड़ियाँ और मिठाई ले आ।’
तीसरे दिन मुलिया मैके से आ गई। दरवाज़े पर नगाड़े बजे। शहनाइयों की मधुर ध्वनि आकाश में गूँजने लगी। मुँह दिखावे की रस्म अदा हुई। वह इस मरुभूमि में निर्मल जलधारा थी। गेहुँआ रंग था, बड़ी-बड़ी नोकीली पलकें, कपोलों पर हल्की सुर्खी, आँखों में प्रबल आकर्षण रग्घू उसे देखते ही मंत्र-मुग्ध हो गया।
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